Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh

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Page 10
________________ किंचजह य अणंतरजायं पि, किंपि कट्ठिट्ठगोवलाइदलं । साडणसंधणविहिणा, काऊणं अवचिओवचियं ॥६७॥ आकारंतरविहिणा. ठवेइ सविसिटठमंदिरत्तेण । अइनिउणसत्तहारो, तहेव अहयं पि उवउत्तो। ॥६८॥ सुयदिटुचिर पमेयं, कि पि पारद्धगंथपाउग्गं । गाहा-सिलोग-गाहऽद्ध-कुलगपमुहं परकयं पि ॥ ६९॥ अवणयणदाणविहिणा, कहिपि काऊण अवचिओवचियं । दाराणुगुणत्तेणं, एत्थं कत्थवि ठविस्सामि ॥ ७० ॥ सपबंधेसु य नियकव्व-गव्वचागत्थमवरकइरइयं । पक्खिवमाणो तक्करण-सचित्तजुत्तो वि होइ लहू ॥७१ ॥ केवलमुवयारकए, परेसिमेसो महं समारंभो । सो य सपरोभयउत्तीहिं, जुत्तिजुत्तत्तणमुवेइ ॥७२॥ दीसइ य जेण सविसेस-गाहगे आगयम्मि वणियजणो। सपरोभयहट्टपयट्ट-भंडविच्छड्डववहारी ॥७३॥ एसा य पत्थुयारा-हणेह संवेगरंगसालत्ति । भण्णइ विणिच्छियत्था, गुणनिष्फण्णेण नामेण ।। ७४॥ एसा य जहा रण्णा, महसेणेणं नवल्लदिक्खेणं । जइगिहिविसया पुट्ठा, सिट्ठा जह गोयमेणं च ।। ७५ ॥ जह तं सम्मं आराहिऊण, सो पाविही य नेव्वाणं । तह एत्थ कहिज्जंतं, अवहियचित्ता निसामेह ॥७६ ॥ अत्थि धणधण्णपडिपुण्ण-पउरपुरगामनिवहरमणिज्जो। रमणिज्जरूवलावण्ण-जुवइरेहन्तदिसिचक्को ॥७७॥ दिसिचक्कागयनेगम-कीरन्तविचित्तभूरिववहारो। ववहारज्जियबहुधण-जणकारियपवरसुरभवणो ॥ ७८॥ सुरभवणतुंगसिंगग्ग-धवलधयनिवहभरियनहविवरो। नहविवरट्ठियखेयर-परिभावियरम्मयगुणोहो ॥७९॥ रम्मयगुणोहरंजिय-पंथियकीरन्तवासपरिवंछो । कच्छो नाम जणवओ, जंबूदीवम्मि भरहद्धे ॥८०॥ गोविंदसयाणुगयो, बहुहलिओ णेगअज्जुणो जो य । एगहरिहलियअज्जुण-मवमण्णइ भारहं कहं पि ॥ ८१॥ तत्थ जुवइ व्व सुविया, दिणअरमुत्ति व्व पउरपहकलिया। सुविभत्तवण्णसण्णा, पच्चक्खा सद्दविज्ज व्व ॥ ८२॥ जा वहइ गरुयपरिहा-सलिलाउलसालवलयपरिखित्ता। जलनिहिजगईवेढिय-जंबुद्दीवस्स समसीसिं ॥८३॥ जा निच्चपयट्टविसट्टनट्ट-कलगेयवड्ढियाऽऽणंदा। परचक्कभयविमुक्का, कयजुगलील विडंबेइ ।। ८४॥ अइगुरूयरिद्धिवित्थरपरिगयजणदिज्जमाणदाणाए । वेसमणो वि हु मण्णे, जीए समणो व्व पडिहाइ ॥८५॥ सा हिमसेलसमुज्जल-महन्तपासायरुद्धदिसिपसरा । सिरिमाला नामेणं, अहेसि नयरी सुरपुरि व्व ॥८६॥ पउमाणणाहिं सुपओहराहिं, वियसंतकुवलयच्छीहि । बहिया पुक्खरिणीहिं, अन्तो नारीहिं जा सहइ ॥८७॥ बहुसाहियाओ विस्सुय-कइकुलकलियाओ काणणालीओ। बहिया अन्तो पवराओ, जीए छज्जन्ति य सहाओ। ॥८८॥ परमेक्को च्चिय दोसो, तीए पुरीए गुणालिकलियाए। खिप्पंति मैग्गणा जं, परम्मुहा धम्मवंतेहि ॥ ८९॥ निम्मलजसोवलंभे, अत्थित्तं संगई य साहूसु । रागो सुयम्मि चिन्ता, निच्चं चिय धम्मकम्मम्मि ॥९०॥ साहम्मिएसु वच्छल्ल-या य रक्खा दुहत्तसत्तेसु । सुगुणज्जणम्मि तण्हा, निवासिणो जत्थ लोअस्स ॥९१॥ पालेइ तं च पणमन्त-भूवमणिमउडमसिणपयपीढो। अच्चन्तपयंडपयाव-विजियसारइयदिवसयरो ॥९२॥ तिक्खकरवालनिद्दय-निद्दारियदस्यिकरिकुंभो। पुरपरिहुब्भडभुयडंड-चंडिममुसुमूरिय विपक्खो ॥ ९३ ॥ रूवविणिज्जियमयणो, ससिवयणो कमलपत्तसमनयणो। अच्चंतपउरसेणो, राया नामेण महसेणो ॥ ९४॥ सोहग्गचायविउसत्तणेण, एगो वि णेगरूवो व्व । रामामग्गणविबुहाणं, हिययगेहेसु जो वुत्थो ।। ९५ ॥ डिंडीरपिंडपंडुरछत्त-च्छण्णंतरं दिसाचकं । छज्जइ य विजयजत्तासु, जस्स विहियऽट्टहासंव ॥९६॥ उज्झियपरिग्गहाणं, वज्जियविसयाण भिक्खुवित्तीण । सुमुणीण व सत्तूणं, जो धम्मगुरुत्तणं पत्तो ॥ ९७॥ पग्गहियखग्गपसरंत,-नीलकंतिच्छडुब्भडो हत्थो। जस्स रणे उग्गयधूम,-केउसोहं समुव्वहइ ॥ ९८॥ तं नत्थि जं न जाणइ, स महप्पा बुद्धिपगरिसवसेण । किंतु निद्दक्खिण्णत्तं, खलत्तणं पि हुन जाणेइ ॥९९॥ अच्चंतहयगयो वि हु, पउरविपत्ती विजंस नरनाहो। बहुकरिवरपरिकिण्णो, सुहिओ वि य तं महच्छरियं ॥१००॥ १ सुवृता = सुरक्षिता २ मार्गणा = बाणा:

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