Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh

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Page 12
________________ अवसरह तुरियमेत्तो, चक्खुप्पसराउ इय पयंपंतो। आबद्धपरियरो लह, नीहरिओ रायभवणातो अह चंडचवलमंगल-विस्संभरपमुहअंगरक्खेहिं । भालयलघडियकरसं-पुडेहि भत्तीए विण्णत्तो देव पसीयह वियरह, आएसं अम्ह एत्थ पत्थावे। विरमह सयं न जुत्तो, पढमं चिय पत्थणाभंगो जइ वि सयं न नियत्तह, खणमेक्कं तह वि पेच्छगा होह । चक्खुक्खेवा हि पहूणं, हुन्ति पारद्धविग्घहरा इय सविणयप्पयंपिय-सवणमणागोवसन्तपरिकोवो । दरकंपियाए दिट्ठीए, पत्थिवो तेऽणुमण्णेइ तो चावकुंतकरवाल-भल्लिसेल्लाइपहरणसमेया। निव्विवरवम्मभूसिय-तणुणो चंडाइणो चलिया पत्ता य कमेणंते-उरम्मि दिट्ठो य तत्थ सो पुरिसो। आसीणो सेज्जाए, देवीए समं ततो भणिओ रे रे पुरिसाऽहम ! सामि-सालमहिलं मलिच्छसमसील । कार्मितो तुममिन्हिं, पइससि कीणासवयणम्मि नियदुच्चरिएण वि तुह, हयस्स जइ विहुन पहरिउं जुत्तं। तह वि हु नियपहुचित्ताणु-वित्तिओ हम्मसि निरुत्तं नवरं एव ठिए वि हु, खामेसु नराहिवं विणयपणओ। जइ जीवियं समीहसि, अहवा सवडमुहो होसु मुंचसु भवणऽब्भन्तर-मुवदंससु पोरिसं खणं एक्कं । जावऽज्जवि निवडइ नो, कयन्तदिट्ठि व्व बाणाऽऽली इय जंपिऊण अच्चन्त-मच्छरुच्छाहभूरिसंरंभा। जाव न ते पहरंति, वज्जरियं ताव तेण इमं । हंहो बालिसरूवा ! खरनहरविभिण्णकुंभिकुम्भस्स। किं कीरइ केसरिणो, कुविएण वि हरिणनिवहेण किंवा उब्भडतंडविय-चंडमणिफारफणकडप्पेण । विहगाहिवस्स कीरइ, रुसिएण वि भुयगवग्गेण ता मुयह विहलसंरंभ-निब्भरं पहरणफडाडोवं । सामत्थाणणुरूवो हि, विक्कमो होइ मरणाय जं च नियसामिभज्जं, कामिज्जंतं पलोइउं तुब्भे । असमंजसं पयंपह, एयं पि विमूढयाए फलं नियसामत्थेण जओ, तग्गिहिणीए मए पवण्णाए । सामित्तमवक्कंतं, दूरे च्चिय तुम्ह नरवइणो एवं च उववइत्तण-दोसो वि हु मज्झ विज्जइ न को वि । तुम्हारिसाण वि पुरो, एवं इह आवसंतस्स अह बाढममरिसो भे, को वारइ मम तणुम्मि पहरेह। किंतु न सो एस जणो, सत्थगणो पक्कमति जत्थ इय जंपियावसाणे, उग्गीरियपहरणा दढं कुविया। ते नावडंति जा ताव, थंभिया तेण पुरिसेण अह वज्जलेघडिय व्व, पत्थरुक्कीरिय व्व सव्वे वि। जाया निच्चलतणुणो, सो पुण कीलित्तु खणमेगं कणगवई पाणीए, गहिऊणं पट्ठिओ अखुद्धमणो । मुणितो य इमो सव्वो, वुत्तंतो भूमिनाहेण तो तेण चिंतियमिमं, किं कोइ इमो सुरो व्व खयरो व्व । होज्ज व विज्जासिद्धो, एवंविहसत्तिसंजुत्तो जइ ताव सुरो किं तस्स, माणुसीए इमीए किर कज्ज । अह खयरो सो व न भूमि-गोयरिं नूण वंछेज्जा विज्जासिद्धो वि विसिट्ठ-रूवपायालजुवइपमुहासु। संतीसु दिव्वनारीसु, कह इमं अणुसरेज्ज धुवं अहवा पासविसप्पिर-कयन्तवसजायधाउखोहस्स। कस्स न कस्स व हिययं, काउमकज्जं अभिलसेज्जा किं वा इमिणा सो को वि, होउ जुज्जइ न संपयमुवेहा । भज्जंपि अरक्खन्तो, कह रक्खिस्सामि महिवलयं देसंतरेसु वि इमो, मज्झ कलंको चिरं पवित्थरिही । एत्तो च्चिय रामो वि हु, सीयाए कए गओ लंकं ता जावज्जवि णो दूर-देसमणुसरइ सो दुरायारो । ताव सयमेव गंतूण, तं अणज्जं निगिण्हामि थंभणपमुहं चिरसिक्खियं च, विज्जाबलं परिक्खामि । इति चितिय कइवयसुहड-संगओ पट्ठिओ राया अह भूमिवई मुणिउंचलियं, चलिओद्धरसिन्धुरभीमयरं। मयराइधयाउलभूसिरहं, रहसुब्भडसेवगरुद्धदिसं दिसिचक्कपवट्टतुरंगगणं, गणनायकदण्डवईहिं जुयं । जुवईजणकायरखोभकरं, करहोहपरोवियवक्खरयं रयजाणवसुक्खयखोणिरय, रयणुब्भडभूसणवित्थरियं । छुरियाइमहाउहदिण्णभयं, भयकंपिरबालयचत्तपहं पहसंतपढंतसुमागहयं, हयहेसियतासिअसिंखलयं । लयणग्गगयं गिहिसच्चवियं, वियसन्तमहाभडलोयणयं नगरीउ बहु चउरंगबलं, बलवन्तविपक्खखएक्कसहं । सहस च्चिय पावियभूरिमहं, महसेणणुमग्गिण नीहरियं अह तेण समग्गेण वि, परियरिओ पवरतुरगमारुढो । ऊसियसियायवत्तो, राया जा जाइ थेवपहं ।। १३०॥ ॥ १३१॥ ॥ १३२ ॥ ॥ १३३॥ ॥१३४ ॥ ॥ १३५॥ ॥ १३६॥ ॥ १३७॥ ॥ १३८॥ ॥१३९ ॥ ॥१४०॥ ॥१४१॥ ॥ १४२॥ ॥१४३ ॥ ॥ १४४॥ ॥ १४५ ॥ ॥१४६॥ ॥ १४७॥ ॥ १४८॥ ॥ १४९॥ ॥१५०॥ ॥ १५१॥ ॥१५२॥ ॥१५३ ॥ ।। १५४॥ ॥१५५ ॥ ॥१५६॥ ॥१५७॥ ॥ १५८॥ ॥ १५९॥ ॥१६०॥ ॥ १६१॥ ॥ १६२॥ ||१६३॥ ॥१६४ ॥ ॥१६५ ॥ ॥

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