Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh

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Page 16
________________ ॥ २७०॥ ॥२७१॥ ॥ २७२ ॥ ॥ २७३ ॥ ॥ २७४ ॥ ॥ २७५ ॥ ॥ २७६॥ ॥ २७७॥ ॥ २७८॥ ॥ २७९ ॥ ॥ २८०॥ ॥ २८१ ॥ ॥ २८२ ॥ ॥ २८३ ॥ ॥ २८४ ॥ ॥ २८५ ॥ पहााह इय चिन्तिऊण तुमए, परमं वेरग्गमुव्वहन्तेण । गहिया तावसदिक्खा, कयं च दुक्करतवच्चरणं अह पज्जन्ते मरिउं, जंबुद्दीवम्मि भारहे वासे। वेयड्ढम्मि गिरिवरे, रहनेउरचक्कवालपुरे चण्डगइनामधेयस्स, पवरविज्जाहरस्स भज्जाए। विज्जुमईए गब्भे, पाउब्भूओ सुयत्तेण उचियसमए पसूओ, कयमभिहाणं च कुलिसवेगो त्ति । अच्चन्तसुरूवतणू, कुमारभावं समणुपत्तो सिक्खविओ सयलकला-कलावकोसल्लमप्पकालेण । नहगमणप्पमुहाओ, विज्जाओ वि हु अणेगाओ अह जणनयणाणन्दं, मणस्सिणीमाणकुमुयमायंडं । तरुणत्तणमणुपत्तो, रेहसि मयरद्धओ व्व तुमं समवयमित्ताणुगतो, गउ व्व तियचच्चरेसु सरसीसु। निस्संकं भमसि पुरे, पउरेसुं काणणेसुं पि अह अण्णया कयाई. तमए 'ओलोयणठ्ठिया दिला । हेमप्पहविज्जाहर-ध्या सुरसुंदरीणामा तीसे य जोव्वणेणं, लायण्णेणं च रूवविहवेणं । सोहग्गेण य हिययं, सुहय ! तुहायड्ढियं दूर तीए वि हु तुह दंसणवसेण, वियसन्तणयणकमलाए । कुसुमाउहो वि वज्जा-उहो व्व मयणो पवित्थरिओ नवरं समीवसंठिय-सहीण लज्जाए रंभियवियारा । नीलुप्पलमुवदंसइ, सा तुह अग्घायणमिसेण कसिणाए रयणीए, संकेओ सइओ इमीए त्ति । हरिसभरनिब्भरंगो, तुमं गतो णिययभवणम्मि तो कयदिणकायव्वो, णियणियगेहेसु पेसियवयस्सो। खग्गसचिवो निसीहे, नीहरिओ णिययगेहातो केण वि अमुणिज्जन्तो, तेणेवोलोयणेण सणियपयं । पविसित्ता सेज्जाए, तीए समीवे निसण्णो सि सो एस दिवसदिट्ठो, पवरजुवाणो त्ति जायहरिसाए। नियदइयणिव्विसेसा, तुज्झ कया तीए पडिवत्ती अह अवरोप्परसविलास-वयणगोट्ठीए गमिय खणमेगं । तुमए भणियं हे सुयणु !, विसरिसं दीसइ तुहेमं तहाहिकह पहसियससिजोण्हा-देहसिरी कह व भुयगभीमोऽयं । रेहइ चिंहुरचओ तुह, वेणीबंधेण संजमिओ कह लक्खणेहि लक्खि-ज्जसे तुमं विज्जमाणनाह व्व । अप्पत्तपणइसंगम-सुहं च कह नज्जइ सरीरं ता कहसु सुयणु ! परमत्थं, किं सो पई तए चत्तो। अहवा चत्ता सि तुमं, अण्णासत्तेण तेणेव अह तीए थेवमउलिय-लोयणनलिणाए जंपियं एयं । हे सुहय ! सुणसु एत्थं, परमत्थं विसरिसत्तम्मि आरूढजोव्वणा हं, इहेव विज्जाहरिंदपुत्तेणं । कणगप्पहनामेणं, उव्वूढा गाढपणएणं परिणयणाणंतरमवि, मह दोसा वेयणीयवसओ वा । दाहज्जरेण गहिओ, स महप्पा जलणतुल्लेण तो उव्वेल्लइ कंपइ, दीहं नीससई विरसमारसइ । सिहितावियलोह केंवल्लि-मज्झखित्तो व्व अणवरयं पारद्धा य अणेगे, तप्पिउणा रोगपसमणनिमित्तं । विविहोसहप्पओगा, परिचत्तासेसकज्जेणं तं णत्थि ओसहं नत्थि, सो मणी सा न विज्जए विज्जा । विज्जा वि नत्थि ते जे, न तत्थ वावारिया पिउणा पम्मुक्कपाणभोयण-हाणविलेवणपमोक्खकायव्वो । सोगभरगब्भिरगिरो, रुयइ य पासट्ठिओ सयणो जणणी वि से अविच्छिण्ण-सोगवसनिस्सरन्तनयणजला । नज्जइ दिट्ठिजुगोइण्ण-सिन्धुगंगापवाह व्व तप्पणइजणो वि दढं, तम्मइ निम्मायपेमसव्वस्सो। तिव्ववणहव्ववाहोव-दद्धखाणु व्व विच्छाओ इय तस्स आवयाए, विमणुम्मणयम्मि नयरिलोयम्मि । कीरन्तेसु य विविहेसु, देवउवजाइयसएसु अवि अहिययरं वुड्डिं, वच्चंते पइखणं पि दाहजरे। पम्मुक्कजीवियासे, नियत्तमाणम्मि वेज्जगणे तेण परिचिन्तियमिमं, अहो न केणइ कहपि साहारो। कीरइ विहुरावडियस्स, थेवमेत्तं पि जीवस्स अइवच्छला वि निद्धा वि, बंधवा जणणिजणगसहियावि। आवयकूवावडियं तडट्ठिया, चेव सोयंति थेवं पि जत्थ जायइ, जियस्स कत्तो वि नो परित्ताणं । तत्थवि वसंति लोगा, अहो महं मोहमाहप्पं जइ कह वि य दाहजरो, ममं इमो उवसमेज्ज थेपि । ता उज्झियसयणधणो, जिणदिक्खं अणुसरामि त्ति १. ओलोयणट्ठिया = गवाक्षस्थिता, २. चिहुरचओ = केशभरः, ३. कवल्लि = कटाह, ॥ २८६॥ ॥ २८७॥ ॥ २८८॥ ॥ २८९॥ ॥ २९० ॥ ॥ २९१ ॥ ॥ २९२॥ ॥ २९३॥ ॥ २९४ ॥ ॥ २९५ ॥ ॥ २९६ ॥ ॥ २९७॥ ।। २९८॥ ॥ २९९ ॥ ॥३००॥ ॥३०१॥ ॥३०२॥ ॥३०३॥

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