Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh
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भणिओ य महायस ! मुयसु, सोगमित्तो कयं विचित्तेणं । परिहासेणं माइंद-जालमेयं न परमत्थो तहाहि
नाहं पुरिसो न य मज्झ तुज्झ दइयाए कज्जमवि किं पि। न य सामण्णपरिक्कम - विक्कंतो होसि तं राय ! किंतु इय वइयरेणं, तियसो हं पढमदेवलोगाओ। तुज्झ पडिबोहणत्थं, पुव्वप्पणएण ओओ म्हि किंवा मित्त ! न सुमरसि, जमुणानइपरिसरम्मि पुव्वभवे । जं आसि तुमं हत्थी, बहुलक्खणसंगयसरीरो सत्तंगपरिद्वाणो, महानरिन्दो व्व विसयपडिबद्धो । पवहन्तदाणपसरो, सरोसपडिदन्तिभंगकरो बहुकरिकुलपरियरिओ, वियरन्तो तेसु तेसु ठाणेसु । करिपिसियलालसेहिं, सबरजुवाणेहिं दिट्ठो सि तोह वारिबंध-पहोवाएहिं सरपहारेहिं। परिवारब्भूयं तुह, विणासियं गयकुलमसेसं अपमत्तयाए गइकोसलेण, दूराउ परिहरन्तेण । तुमए तेसिमवाए, चिरकालं रक्खिओ अप्पा अह अण्णया कयाई, सलिलोयारम्मि तुज्झ गहणत्थं । तेहि खड्डा खणिउं, उवरिं छइया तणाईहिं खित्ता तदुवरि धूली, तह जह भूमीए सा समा जाया । तो तरुगहणनिलुक्का, पलोइउं ते पवत्त त्ति तुममवि असंकियमणो, पुव्वपवाहेण पाणियं पाउं । इंतो धस त्ति पडिओ, तीए खड्डाए विवसंगो अइपंडिओ सि चिरजीविओ सि, रे ! इण्हिं कत्थ वच्चिहिसि । इय कलकलं करेंता, सबरजुवाणा य संपत्ता तो तेहि नियं दारि-ऊण कुम्भत्थलाउ थूलाई । मोत्ताहलाई गहियाई, जीवमाणस्स दसणा य अह तिक्खवेयणापबल - जलणजालाकलावसंतत्तो। जीवित्ता खणमेगं, झत्ति तुमं मरणमणुपत्तो उaaण्णो य नईए, गंगाए परिसरम्मि सारंगो। तत्थ वि बालो वि तुमं, सजूहनाहेण हणिओ सि तत्तो मगहाविसए, सालिगामम्मि सोमदत्तस्स । विप्पस्स सुओ जाओ, नामेणं बंधुदत्तो ति बंभणजणपाओग्गो, कलाकलावो य अहिगओ तुमए। जागविहिपरमकुसल - तणेण लद्धा पसिद्धी य कति जत्थ कवि, सग्गत्थं अहव रोगसमणत्थं । जागा तेसु य पढमं तं निज्जसि पउरलोगेण कहसि य जागस्स विहिं, पयट्टसे विविहपावठाणाइं । अगणियपरलोयभओ, हुणसि सहत्थेण छागे य एवं वच्चंतेसुं, दिणेसु एगम्मि अवसरे रण्णा । पारम्भिओ महन्तो, तुरंगमेहो महाजागो आहूओ तत्थ तुमं, रण्णा सक्कारिओ य भत्तीए । पगुणीकया य अस्सा, सुलक्खणा जागकज्जेणं अभिमंतिया य तुमए, वेयपसिद्धेण ते विहाणेण । एत्थन्तरम्मि तारिस - जागविहिं पेच्छमाणस्स कत्थवि दिट्ठं एवंविहं ति, ईहाइणो करेंतस्स । जायं जाइस्सरणं एक्कस्स तुरंगपोयस्स
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दिट्टं च पुव्वजम्मे, जागविहिवियक्खणेण हुंतेण । जं हुणिया भयविहुरा, बहुसो वि गवाइणो तेण दट्ठूण वइयरमिमं, ताहे परिचिन्तियं भयत्तेण । धम्मच्छलेण पावं, अहो कहं उवचिणन्ति जणा साहंति य मुद्धाणं, जागे निहया वयंति सग्गम्मि । तिप्पिज्जंति य तियसा, जलणम्मि हुणिज्जमाणम्मि न मुणंति इमं पावा, जइ जागहया वयन्ति सग्गम्मि । सग्गाभिलासिणो सयण- बंधुणो ता वरं हुणिया अहवा पयंडपासंड-कूडपडियस्स मुद्धलोयस्स । को दोसो अवरज्झति, एत्थ वेइयउवज्झाया ता एयं पाविट्टं, सुदुट्ठचेट्टं हणामि उवझायं । जइ पुण जियन्ति एए, जागनिमित्तागया तुरया इय चिंतिऊण तेणं, वच्छयले खरखुरप्पहारेणं । तह पहओ सेज्ज तुमं, जह मुक्को जीवियव्वेण पवियंभियपाणिवहा-भिलासवससंविढैत्तपावेणं । घडियालए य जातो, नेरइओ पढमनरयम्मि छव्विहपज्जत्तीए, पयडसरीरो, मुहुत्तमज्झम्मि । जा चिट्ठसि ताव लहुं, पकुणन्ता किलकिलारावं परमाहम्मिय-असुरा, अच्चन्तं निद्दया महाकूरा । बीभच्छा भयजणगा, समागया तत्थ ठाणम्मि दुक्खं वज्जघडीए, किं रे चिट्ठसि विणिस्सरसु बाहिं । इइ जंपिऊण वज्जं -कुसेहिं कड्ढिन्ति तुह देहं १. आगतः, २. सद्यः - शीघ्रम् ३. समर्जितपायेन समुपार्जितपापेन,
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