Book Title: Samdhikavya Samucchaya
Author(s): R M Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 15
________________ संधिकाव्य-समुच्चय तेथी ऐतिहासिक महत्त्व धरावे छे. हेमतिलकसूरि वडगच्छना आचार्य वज्रसेनसुरिना पट्टशिष्य हता. तेमना मुनि-जीवनना अगत्यना बनावोनी सालवारी संधिमां आ प्रमाणे छे-दीक्षा सं. १३५३ (ई.स.१२९७),वाचनाचार्य-पदवी सं. १३७० (ई.स.१३१४), आचार्यपद सं.१३७४ (ई. स.१३१८) अने स्वर्गवास सं.१४१२ ( ई. स १३५६) १८. तप संधि : आमां जैन धर्म प्रणीत बार प्रकारना तपनु माहात्म्य दर्शावी तप करवानो उपदेश करवामां आव्यो छे. जीभनी लोलुाताथी थतां दुःखोंनुवर्णन करी कवि मनुष्योने तेनाथी वारे छे. तप करी जन्म सफळ करनार तपस्वीओना दृष्टांतो आपी कवि तपनो महिमा करे छे. १९ अनाथि-महर्षि संधि : ____ आ संधिनु कथावस्तु ७ मी अनाथि संधे प्रमाणे ज छे, अहीं एने अनेकविध वर्णनोथी पल्लवित करवामां आयु छे, २० उपदेश संधि : संधिना नाम प्रमाणे आमां सीधो सरळ उपदेश ज आपवामां आवेल छे. प्रथम श्रावकना बार व्रत पाळवानो अनुरोध करी पछ. कवि सामान्य सदाचरणना विविध नियमो पाळबानो उपदेश करे छे. कर्तृत्व अने रचना-समय संधि १-५ प्रथम पांच संधिना रचयिता आ. रत्नप्रभसूरे छे. आचार्य वादिदेवसूरिना शिष्य आ. समभसरि १३मा शतकना एक प्रखर जैन दार्शनिक अने कवि हता. एमणे संस्कृत, प्राकृत. अपभ्रंश आदि विविध भाषाओमा विपुल साहित्यसर्जन कयु छे. वादिदेवसूरि-रचित न्यायग्रन्थ 'प्रमाणनयतत्त्वालोक'नी 'रत्नाकरावतारिका' नामक प्रसिद्ध टीका "आ. रत्नप्रभसूरिनी महत्वपूर्ण कृति छे.' आ ५००० श्लोक प्रमाण संस्कृत गद्य रचना तेमनी दार्शनिक तथा कवि बन्ने तरीकेनी योग्यता पुरवार करवा समर्थ छे. 'मतपरीक्षापचाशत' एमनो बीजो दार्शनिक ग्रंथ गणाय छे, परन्तु ते हजु सुधी उपलब्ध थयो नथी. _ 'नेमिनाथचरित्र' अने 'पार्श्वनाथचरित्र' ए बे एमना रचेला महाकाव्यो छे. जेमा क्रमे २२मा अने २३मा तीर्थ करना जीवनचरित्र वर्णवायेल छे 'नेमिनाथचरित्र' ए १३६०० श्लोक प्रमाण प्राकृत भाषाबद्ध रचना छे. तेनी र वना स. १२३३ (ई.स.१९७०) मां थई छे. अत्र संगृहीत संधि काव्यो जेमांथी लीधा छे ते 'दोघट्टी वृत्ति' नामक प्रसिद्ध टीका, रत्नप्रभसूरिए धर्मदास गणिनी 'उपदेशमाला' नी विशेष वृत्ति रूपे रचेली छे. १११५० श्लोक प्रमाण आ वृत्ति संस्कृत गद्यमां छे. तेमां प्राकृत कथाओ उपरांत अपभ्रश पद्यांशो पण घणा के आ दोघट्टी वृत्तिनी रचना सं. १२३८ (ई. स. ११८२)मा तेमणे भरूचमां आवेल अश्वावबोध तीर्थमां रहीने करी छे.२ १. रत्नाकरावतारिका, ख. १-३ संपा. दलसुखभाई माल वणिया, अमदावाद, १९६५-६९. २. अदेशमाला-दोघट्टी वृत्ति, सपा. आ. हेमसागरसूरि, मुंबई,१९५८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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