Book Title: Samdhikavya Samucchaya
Author(s): R M Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 135
________________ [कर्ता : अज्ञात पय पणमवि सिद्धह साहू गुणवंत १९. अणाहि-महरिसि-संधि रचना - समय : ई. स. १४०० पूर्व, लेखन समय : ई. स. १४३०] ध्रुत्रक नंदणवण - उम्मु धम्मत्थ-गई निसुणेहु तत्तु जीवहि ममत्त मोहिय-मणाहं' इह जंबु-दीव भारहु पसिद्धु तर्हि गरि पुरिहिं पायार- तुंगु नरवइ हि सेणिउ करइ रज्जु अन्नह दिणि राउ विहार-भूमि उज्जाण पलोहय चूय- चारु नालियर केलि नारिंग जाइ कोकिल - कुल बहु सारंग मोर तर्हि रुक्ख दःख नाणाविहाण - खति-संजुत्तउ नाग-समिद्धह चरण- पवित्तह Jain Education International पिक्खवि मुणि मणि चितइ नरिंदु अह सोम-मुक्ति संपुन्न- चंदु कुमाल के लि-गन्भह समाणु बपु दंतु खंतु गंभीर धीरू उवसम-निहाणु संचत संगु वंदे याहिण पुण करेउ अइ दूरि नवि य आसन्न -ठाउ अशुद्ध मूल पाठ : 1. मणांहु 2. तांह 7 उवससु० 8. दिय 9 सुकमालु सासय-ठाण- पर्यायह जोव अणाह सणाह किय [१] पडे सुगुरु निय-गुणहिं जुत्तु अणुसट्ठि देइ सुय भणिय ताह मिग-देषु धण-कण समिछ रायगहुँ नयरु जिणहरहिं चंगु हय-गय-रह-चड भड-कोडि- सज्जु उ मंडकुच्छि वर- वेइयम्मि चपय- असोय- वड- 'पीययारु (1) पाडल सेवत्तिय केवि जाइ कलहंस कीर वायस 'चकोर जोअंत जाइ तरु फल- निहाण घत्ता सुठु मणोरमु गुत्तिहिं गुत्तर ॥ १ For Private & Personal Use Only ४ [२] किं खेयरु किं सुरु अह सुरिंदु तव तेयवंतु किरि दिणयरिंदु वपु देह - कंति - लक्खणह ठाणु मु'ण अमल-चित्तु नह सरय - निरु निच्छइ सुणिअइ मणि घरिउ रंगु उवविसइ नरेसरु नर - समेउ मुण पुच्छर अंजलि करिउ राउ 3. रायग्गिहु 4 तर्हि 5. रजु 6. पीयायारु ८ १० तर्हि पिक्खइ मुणि गुण-निलउ जिण दिट्ठइ पावह विलउ ॥ ११ २ ४ ६ www.jainelibrary.org

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