Book Title: Samdhikavya Samucchaya
Author(s): R M Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 137
________________ ११२ संधिकाव्य-समुच्चय पत्ता 'नवि मुणवि मणाहह अहव सणाहह नवि लब्भहि परमत्थु निव निम होइ अणाहु वि महर्व सणाहु वि सुणि अक्खडं हउं तुम्हि तिव ॥११ [४] निसुणि मं वित्तु मह पुच्छए तुह कह जिम अणाहो य जण-मज्झि हउं दुह सहं नयरि कोसंबिधण-रिद्धि-जण-संकुला पुरि पायारि मंदिरिहिं रयणुज्जला २ करइ तहि रज्जु मह बप्पु जण-सुहकरो तुरय-गय-लक्ख भड-कोडि अरि-खयकरो तत्थ मह देहि उदंड इय वेयणा पीड सव्वंग दाहेण गय चेयणा तिक्व-सत्थेण देहस्स अभिंतरे कुविउ जिम मरि विदारेइ उयरंतरे अदिठ-चम्मावसेसो निराणंदमओ। रयणि-दिवसाई वोलेइ गय-निदओ मज्झ दुक्खेहि मह जणउ तल्लिच्छ भो जेम सिल तत्त उवरम्मि जल-मच्छो राय-वयणेण आयरिय बहु आगया विज्ज मंतेहिं तेगिच्छ गह-कुसलया 'नरवरिदेण भणिया य तेगच्छिणो कुणहु नह होई नोरोगु मह नंदणो देमि तुम्ह रज्जु सार-भु(?) विउलं धणं __ देस नगराई वर-कन्न-रयणं कणं १० पत्ता एवं ते निमुणवि मंतगविग्ग वि निय निय सस्थ समायरहिं जसु कित्ति सुणंतह धनु इच्छंतह निय-आगम-बुद्धिहिं सहियं ॥ ११ 1. वन्भहि 2. अहवि स० 3. धधण 4: उडंडं हुय 5. दोहेण 6. आइरिय 7. नरवारिदे०8. जोइ 9. नवारांई व. 10. सहिया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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