Book Title: Samdhikavya Samucchaya
Author(s): R M Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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९८
संधिकाव्य-समुच्चय
१४
निय-सील-भंग-भय-भीरुयाहि अवि रज-लच्छि परिचत्त जाहि ते 'नमयासुंदरि-मयणरेह धुरि लहहिं महासइ-मज्झि रेह निय कंतु मुत्त सुमिणे वि जाउ पर-पुरिम् न' कंखहिं इत्थियाउ स्वसग्ग-संगि निव्वडिय-सत्त ताउ वि महासइ जिणिहिं वुत्त
पत्ता सुभदा रइसुंदरि अंजणसुंदरि दोवइ-दवदंती-पमुह गुण-रयण-समिडिय भुवण-पसिद्धिय जयहिं महासह सील-घर
॥१७
अहह पिच्छेह सीलस्स माहप्पय राम-भज्जाइ अइ अच्छरिय-कप्पय पाय-फरिसेण फिडेवि जं पावओ नोरु लहलहा रोगग्गि-उल्हाविमो रोग-जल-जलण-विस-भूम-गहमुग्गया सीह-करि-सप्प-चोसार-उवप्तग्गया मारि-डमराह भय-करण जे दीसही सीलवंताण नामेण ते नासही ४ भाउ अइ-दीह रोगेहि परिचत्तय रूव-लावन्न-प्लोहग्ग-बल-जुत्तय नं च मन्नं पि अभिराम जगि गिज्जए सीलवंताण तं सयलु संपज्जए पणय-नीसेस-खयरिंद-नर-प्तामिओ नियय-भुय-बलिग इंदो वि जिणि नामिओ। अन्न-रमणीय कय-चितु लंकावई करवि कुल-नासु सो पत्तु अहर-गई ८ निरय-भवि अगणि-पुत्तलिय-परिरुंभणं तिरिय-जोण सु संढत्त-वह-बंधणं मणुय-जम्मम्मि दोहग्ग-छवि-छेयणं सोल-पब्भट्ठ पावंति बहु वेयणं १० मणुय-जम्मम्मि सरयन्भ-चंचलतरे गिरि-नई-वेग-सरिसम्मि जुवण-भरे । असुइ-तुच्छेसु विसासु नर लुद्धया मुक्ख-सुक्खाइं हारंति ही मुझ्या १२ सुहम-नव-मक्ख-जीवाण संहारणं देह-धण-कित्ति-धम्माण स्वय-कारणं सयल-दुह-मूल-महुबिंदु-सम-सुक्खयं विसय-सुह चयहु अहिलसहु जइ मुक्खयं१४ विसय विस सील अमयाण फल बुझिओ सील-भट्ठाण संसग्गमवि अग्निमो : सुद्ध-प्तीलम्मि ठावेह अप्पा गयं जेम अचिरेण पावेह निव्वाणयं १६
.
पत्ता इय सीलह संधी अइय सुबंधो जयसेहरसूरि-सीस-कय भवियहु निसुणेविणुहियइ धरेविणु सील-धम्मि उज्जमु करहु ॥१७
1. A नम्मया० 2. A कंखिहि 3. अंतः A.B. इति सीलसंधि समाप्ता ।
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