Book Title: Samdhikavya Samucchaya
Author(s): R M Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 129
________________ १०४ वीलाड पुरवरि जसु महिम करंतइ सो गुरु निय- गच्छ संधिकाव्य-समुच्चय अह गुणि गरवउ सो गणधारू थेरा वसि नायउरि पहूतउ साठि वरिस ऋतु पालिउ निम्मलु अम्ह सव्वा वरिस चहत्तरि हव पुण थाकई जे दिण केई इम मणि संधु क (स्व) मावइ सुह-मणु मुणिहिं गुणी समइ सुहारभि गच्छ सीख देविणु सुह- चित्तू Jain Education International मणु-सय-त्रच्छरि सुगुरु-सुपट्टिई घत्ता [<] जणि गुणवंत अणु मुसि घत्ता निरइयार - विहि-विह (हि) य-[वि] हारू आउ जाणि तो भणइ निरुत्तर सात जात करि लियउ चरण- फलु मास तिन्नि ते पूरिय सत्वरि सफल करउं ते अणसणु लेई एगारस दिन पालइ अणसंणु बाह (रु?) त्त' इमाह वदि बारसि हेमतिलकसूरि दिव संपत्त अंत : ।। इति श्री हेमतिलकसूरि संधि ॥ पदमि साहि उडवु कियउ रणसिहरसूरि थपियउ ॥९ त्रिण - साणि (!णु) उज्जोइयउ संघह मण-छिय दियउ For Private & Personal Use Only २ ४ 118 www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162