Book Title: Samdhikavya Samucchaya
Author(s): R M Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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अंतरंग-संधि
७७
बहिं होइ वसंतह मण-किलेसु उज्झियइ झत्ति मल इव सु देसु एसु अ सदेसु इ उ पुण विदेसु उत्तम-मणि न वसइ एहु रेसु १४ वसुदेव-कुमरि मिल्हिय-स-देसि भण कित्तिय परिणिय कुडिल-केसि निय-ठाण-भट्ठ किम कुसुममाल निव-सीसु न पावइ गुण-विसाल १६ सरि सुक्कइ सुचरण वर वयंस उड्डेवि पत्त पर-तीरि हंस तहिं चेव मरणु हुय मच्छयाण "ए हेउ देसु अचयंतयाण' १८ जं भणिउ तुम्हि वहु न विस-कन्न तं जुत्तु जेण एसा अकन्न जे करइ संगु एहह अपुन्न
तेसिं पि हु मत्थइ नत्थि कन्न २० ता मिल्हवि मोह कुराउ हेव सहि किज्जइ अप्पणि जिणह सेव जह लन्मइ चडणउं गय-वरम्मि ता चडइ कवणु पंडिउ खरम्मि' २२ इत्थंतरि जंपिउ अभविएण
गुरु-रोस-रत्त-लोअण-जुएण 'पभणंतु सदूसणु निय-कुडुबु तुह मिल्हि अवरु इह नत्थि डंबु २४ तं नस्थियवाइउँ विहिउ तेण जण-णीइ विडंबसि वय-बलेण सा पुण भईव-सुकुमाल-काय न सहइ घण-कक्कस-'तक्क-घाय २६ थंभो वि पुरिसु पुरिसो वि थंभु वाई-जण थप्पई पयड-दभु अणयारो वि आयार-सुटु आयारु वि पोसई इयरु दु? २८ जिम भद्द अभद्द वि भणय विद्धि जिम वंकु वि मंगलु कूर-दिट्ठि तिम तुम वि नाम-मित्तेण भव्वु पुग चिट्ठिउ सयलु वि तुह अभवु' ३० मह चिंतइ भविउ विसन्न-चित्तु 'विणु कुड्डु न लग्गइ कहवि चित्त इय दुलिय गलइ उवएस-खरु जिम भरिय-कुंभ-उपरिहिं नीरु ३२ मूढम्म दिन्नु उवएस-दाणु बहु-लह-हेउ हुइ विस-समाणु जिम कुंबिय-सप्पह दुद्ध-पाणु केवल विस-वुड्ढिहिं हुइ नियाणु ३४ अणुचिउ विवाउ सह-मूढएण जिम कट्ठ-चडणु सह-कोढिएण उज्झेविणु तेण वितंडवाय हिव अणुसरडं जिण-राय-पाय' ३६
पत्ता इय मणि चिंतेविणु मूनु करेविणु जा चल्लइ सो जिण-दिसहिं ता भणइ विच्छाइम अग्गलि थाइय कुमइ लित"इव घण-मिसिहिं ॥३७"
1. B देउ 2. A अचयंताण 3. B. वाईउ 4. B. तकघाय 5. B. विभार सद्ध 6. B. भददु 7. B. केहवि 8. B. वितुंडवाय 9. B. मण 10. A वयण. 11 अंत: A. पंचमोधिकार : ॥ B. || इति अभव्यं प्रति भव्य-उत्तर-प्रदानो नाम पंचमोऽधिकार :॥
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