Book Title: Sambodhi 1996 Vol 20
Author(s): Jitendra B Shah, N M Kansara
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 15
________________ Vol. xx, 1996 NATYASASTRA, SANSKRIT DRAMA... 11 dramatists, but he has not come in the way of their creativity and introduction of new features or attempting innovations. We can also understand the three channels through which our theatre grew after the period of the Epics till the medieval age. They are - the Royal Court Theatre, the Temple Theatre and the Open-air Theatre. REFERENCES : 1. तवगीतप्रसाधिते रङ्गे वयमपि प्रकरणमारभामहे । (Pratijñāyaugandharāyana, Prologue) 2. ये भावा मानुषाणां स्युर्यदङ्गं यच्च चेष्टितम् । सर्वं तदेव कर्तव्यं दिव्यैर्मानुषसङ्गमे ।। शापभ्रंशात् तु दिव्यानां तथा चापत्यलिप्सया । कार्यो मानुषसंयोगः शृङ्गाररससंश्रयः ॥ पुष्पभूषणजैः शब्दैरदृश्यापि प्रलोभयेत् । पुनः सन्दर्शनं दत्त्वा क्षणादन्तर्हिता भवेत् ॥ वस्त्राभरणमाल्याद्यैर्लेखसम्प्रेषणैरपि । ईदृशैरुपचारैस्तु समुन्माद्यस्तु नायकः ॥ उन्मादनात् समुद्भूतः कामो रतिकरो भवेत् ॥ (NS, XXII. 324-31) 3. एतच्च विक्रमोर्वश्यां स्फुटमेव दृश्यताम् इति शिवम् । (Abh. on above); N XXII. 149-55) 4. उक्तव्याख्याने तु कोहलादिलक्षिततोटकसट्टकरासकादिसङ्ग्रहः । (Abh. part II, p. 407); तेन कोहलप्रणीतलक्ष्माणः साटकादयो न लक्ष्यन्ते । (Natyadarpana, p. 23) कोहलादिभिरेवं तु वत्सशाण्डिल्यधूर्तितैः ।। मर्त्यधर्मक्रियायुक्तैः कञ्चित्कालमवस्थितैः ॥ एतच्छास्त्रं प्रणीतं हि नराणां बुद्धिवर्धनम् । (NS XXXVII. 24, 25)

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