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अध्याय - 2
जीव का पुद्गल के साथ सम्बन्ध - एदेहि य संबंधो जहेव खीरोदयं मुणेदव्यो। ण य होंति तस्स ताणि दु उवओगगुणाधिगो जम्हा॥
(2-19-57)
इन वर्णादिक भावों के साथ जीव का सम्बन्ध दूध और जल के समान (संयोग-सम्बन्ध) मननपूर्वक जानना चाहिये; और वे वर्णादिक भाव जीव के नहीं हैं क्योंकि जीव उपयोगगुण से परिपूर्ण है।
The association of the soul with these attributes, like colour etc., must be understood as the mixing of milk with water. These attributes are not part of the soul as the soul's characteristic is consciousness.
जीव में वर्णादि का कथन व्यवहार नय से है - पंथे मुस्संतं पस्सिदूण लोगा भणंति ववहारी। मुस्सदि एसो पंथो ण य पंथो मुस्सदे कोई॥
(2-20-58)
तह जीवे कम्माणं णोकम्माणं च पस्सिदुं वण्णं। जीवस्स एस वण्णो जिणेहि ववहारदो उत्तो॥
(2-21-59)
गंधरसफासरूवा देहो संठाणमाइया जे य। सव्वे ववहारस्स य णिच्छयदण्हू ववदिसंति॥
(2-22-60)
मार्ग में किसी को लुटता हुआ देखकर व्यवहारी जन कहते हैं कि यह मार्ग लुटता है,
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