Book Title: Samaysara
Author(s): Kundkundacharya, Vijay K Jain
Publisher: Vikalp

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Page 116
________________ अध्याय -7 soul. Therefore, leaving aside all such dispositions, embrace only the knowledge-consciousness that is eternal, unchanging, and indivisible unity. ज्ञान से निर्वाण प्राप्त होता है - आभिणिसुदोहिमणकेवलं च तं होदि ऍक्कमेव पदं। सो एसो परमट्ठो जं लहिदुं णिव्वुदि जादि॥ (7-12-204) मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान और केवलज्ञान ये पाँचों ज्ञान एक ही पद हैं (एक ज्ञान नाम से जाने जाते हैं)। सो यह (ज्ञान) परमार्थ है (मोक्ष का साक्षात् उपाय है) जिसे प्राप्त करके आत्मा निर्वाण को प्राप्त होता है। Sensory knowledge, scriptural knowledge, clairvoyance, telepathy, and omniscience, all five, are but one - abode of knowledge. This (knowledge) is the ultimate truth, on whose acquisition the Self attains liberation. कर्मकाण्ड से ज्ञान प्राप्त नहीं होता - णाणगुणेहि विहीणा एवं तु पदं बहू वि ण लहते। तं गिण्ह णियदमेदं जदि इच्छसि कम्मपरिमोक्खं॥ (7-13-205) ज्ञानगुण से रहित अनेक पुरुष (अनेक कर्म करते हुए भी) ज्ञान स्वरूप इस पद को प्राप्त नहीं करते; इसलिए (हे भव्य !) यदि तू कर्मों से मुक्ति चाहता है तो इस नियत पद-ज्ञान को ग्रहण कर। 99

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