Book Title: Samaysara
Author(s): Kundkundacharya, Vijay K Jain
Publisher: Vikalp

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Page 186
________________ अध्याय - 10 जह सेडिया दु ण परस्स सेडिया सेडिया य सा होदि। तह संजदो दु ण परस्स संजदो संजदो सो दु॥ (10-51-358) जह सेडिया दु ण परस्स सेडिया सेडिया य सा होदि। तह दंसणं दु ण परस्स दंसणं दंसणं तं तु॥ (10-52-359) जैसे सफेदी-खडिया पर की (दीवाल आदि रूप) नहीं है, सफेदी वह तो सफेदी ही है (वह अपने स्वरूप में ही रहती है); उसी प्रकार ज्ञायक (आत्मा) पर का (ज्ञेयरूप) नहीं है। ज्ञायक वह तो ज्ञायक ही है (पर को जानता हुआ भी अपने स्वरूप में रहता है)। जैसे सफेदी-खडिया पर की नहीं है, सफेदी वह तो सफेदी ही है; उसी प्रकार दर्शक (आत्मा) पर का नहीं है, दर्शक (दृष्टा) वह तो दर्शक ही है। जैसे सफेदी-खड़िया पर की नहीं है, सफेदी वह तो सफेदी ही है; उसी प्रकार संयत (आत्मा) पर का (परिग्रहादि रूप) नहीं है। संयत वह तो संयत ही है। जैसे सफेदी-खडिया पर की (दीवाल आदि रूप) नहीं है, सफेदी वह तो सफेदी ही है; उसी प्रकार दर्शन (श्रद्धान) पर का नहीं है। दर्शन वह तो दर्शन ही है। Just as chalk, when applied to a board etc., does not become one with that board etc., but retains its own identity characterized by whiteness, similarly, the knower Self, while knowing an object, does not become one with that known object, but retains his own identity as a knower. Just as chalk does not become one with an alien substance, but retains its own identity characterized by whiteness, similarly, ........................ 169

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