Book Title: Samaysara
Author(s): Kundkundacharya, Vijay K Jain
Publisher: Vikalp

View full book text
Previous | Next

Page 200
________________ अध्याय - 10 अज्ञानचेतना ही कर्म-बंध का कारण है - वेदंतो कम्मफलं अप्पाणं जो दु कुणदि कम्मफलं। सो तं पुणो वि बंधदि बीयं दुक्खस्स अट्टविहं॥ (10-80-387) वेदंतो कम्मफलं मये कदं जो दु मुणदि कम्मफलं। सो तं पुणो वि बंधदि बीयं दुक्खस्स अट्टविह॥ ___(10-81-388) वेदंतो कम्मफलं सुहिदो दुहिदो य हवदि जो चेदा। सो तं पुणो वि बंधदि बीयं दुक्खस्स अट्टविहं॥ (10-82-389) कर्म के फल का वेदन करता हुआ जो आत्मा कर्म के फल को निजरूप करता है (मानता है) वह दु:ख के बीज आठ प्रकार के कर्म को फिर भी बाँधता है। कर्म के फल का वेदन करता हुआ जो आत्मा 'कर्म का फल मैंने किया ऐसा मानता है, वह दु:ख के बीज आठ प्रकार के कर्म को फिर भी बाँधता है। कर्म के फल का वेदन करता हुआ जो आत्मा सुखी और दुखी होता है, वह दु:ख के बीज आठ प्रकार के कर्म को फिर भी बाँधता है। Experiencing the fruits of karmas, the Self who identifies himself with those fruits of karmas, bonds himself again with the seeds of misery in the form of eight kinds of karmas. Experiencing the fruits of karmas, the Self who believes that he is the creator of those fruits of karmas, bonds himself again with ___ 183

Loading...

Page Navigation
1 ... 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226