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अध्याय -3
ज्ञान और अज्ञानमय भाव का कार्य -
अण्णाणमओ भावो अणाणिणो कुणदि तेण कम्माणि। णाणमओ णाणिस्स दु ण कुणदि तम्हा दु कम्माणि॥
(3-59-127)
अज्ञानी के अज्ञानमय भाव होता है, इस कारण वह कर्मों को करता है, और ज्ञानी के तो ज्ञानमय भाव होता है, इसी कारण वह कर्मों को नहीं करता है।
The ignorant Self manifests himself in wrong knowledge and due to this wrong knowledge he does the karmas. But the Self, aware of his true nature, manifests himself in right knowledge and, therefore, due to this right knowledge he does not do the karmas.
ज्ञानी के सब भाव ज्ञानमय और अज्ञानी के अज्ञानमय होते हैं -
णाणमया भावादो णाणमओ चेव जायदे भावो। जम्हा तम्हा णाणिस्स सव्वे भावा हु णाणमया॥ (3-60-128)
अण्णाणमया भावा अण्णाणो चेव जायदे भावो। जम्हा तम्हा भावा अण्णाणमया अणाणिस्स॥ (3-61-129)
क्योंकि ज्ञानमय भाव से ज्ञानमय ही भाव उत्पन्न होता है, इस कारण ज्ञानी के सब भाव वास्तव में ज्ञानमय होते हैं; क्योंकि अज्ञानमय भाव से अज्ञानमय ही भाव उत्पन्न होता है, इस कारण अज्ञानी के सब भाव अज्ञानमय होते हैं।
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