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ज्ञान निर्वाण का कारण है
परमट्ठो खलु समओ सुद्धो जो केवली मुणी णाणी । तम्हि ट्टिदा सहावे मुणिणो पावंति णिव्वाणं॥
अध्याय - 4
(4-7-151)
निश्चय से जो परमार्थ (आत्मा) है, वह समय (शुद्ध गुण- पर्यायों में परिणमन करने वाला) है, शुद्ध (समस्त नयपक्षों से रहित एक ज्ञानस्वरूप होने से शुद्ध) है, केवली (केवल चिन्मात्र वस्तुस्वरूप होने से केवली) है, मुनि (केवल मननमात्र भावस्वरूप होने से मुनि) है, ज्ञानी ( स्वयं ही ज्ञानस्वरूप होने से ज्ञानी) है। उस परमात्मस्वभाव में स्थित मुनिजन निर्वाण को प्राप्त करते हैं।
Undoubtedly, the divine state of the soul is absolute consciousness (samaya ), pure (free from all viewpoints, only knowledge consciousness), omniscient (having attained its innate attributes), ascetic (absorbed only in the Self), and the knower (being knowledge by itself). The ascetics who position themselves in this divine state of the soul attain liberation (nirvāna).
अज्ञानी का व्रत, तप निष्फल है .
परमट्टम्मि दु अठिदो जो कुणदि तवं वदं च धारयदि। तं सव्वं बालतवं बालवदं विंति सव्वण्हू ॥
(4-8-152)
जो परमार्थ में तो स्थित नहीं है, किन्तु तप करता है और व्रत धारण करता है, उसके उस समस्त तप और व्रत को सर्वज्ञदेव बालतप और बालव्रत कहते हैं।
Anyone who has not positioned himself in the divine state of the
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