Book Title: Sadbodh Sangraha Part 01 Author(s): Karpurvijay Publisher: Porwal and Company View full book textPage 7
________________ पृष्ट चावत नाम पृष्ठवाबत . नाम ३२ साहसीकपना कवीभी त्याग ४९ विनय सेवन करना चाहिये. २८ देना नहि. . १९५० दान देना. २८ ३३ आपत्ति वस्तभी हिम्मत रख- ५१ दूसरेके गुणका ग्रहण करना. २८ कर रहना. २१/५२ औसरपर बोलना. २९ ३४ प्राणान्त तकमी सन्मार्गका ५३ खल-दुर्जनकोभी जनसमाजकी त्याग करना नहि. २१/ अदर योग्य सन्मान देना. २९ ३५ वैभव क्षय होजानपरभी यथो• ५४ स्व परहित विशेषतासे जानना २९ चित दान करना. २१/५५ मत्र तत्र नहि करना. . २९ ३६ अत्यत राग-स्नेह करना नहि. २२/५६ दुसरे-पारायेके घर अकोला . ३७ वल्लभजनपरभी बार बार गुस्सा | नहि जाना. नहि करना २२/५७ की हुई प्रतीज्ञा पालन करनी. १० ३८ क्लेश बढाना नहि. . २३/५८ दोस्तदारसे छुपी वात न ३९ कुसग न है करना. २३/ रखनी. ४० चालकसेभी हित वचन अगी- ५९ किसीकामी अपमान नहि कार करना. २४ करना. ४१ अन्यायसे निवर्तन होना.. २४/६० अपने गुणोंकामी गर्व नहि ४२ वैभवके वस्त खुमारी नहि करना. ३१ रखनी. २४/६१ मनमेंभी हर्ष नहि लाना. ३२ ४३ निर्धनताके पस्त खेद भी न ६२ पहिले सुगम, सरल कार्य शुरु करना. २५] करना. ४४ समभावसे रहना. २५/६३ पीछे वडा कार्य करना. ३२ ४५ सेवकके गुण समक्ष कहेना. २६/६४ (परतु) उत्कर्ष नहि करना. ३२ ४६ पुत्रकी प्रत्यक्ष प्रशसा नही ६५ परमात्माका ध्यान करना. करनी ૨૬૬૬ દુસરેલો સંપને માત્મા સમાન ४७ स्त्री की तो प्रत्यक्ष वा परोक्ष । जानना. ३४ भी प्रशसा करनाही नहि. २६/६७ राग द्वेष करना, नहि. ४८ प्रिय वचन बोलना. tPage Navigation
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