Book Title: Rushidattras
Author(s): Jayvantasuri, Nipuna A Dalal, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 31
________________ लेवा जगान्पु थाक अने बीकनी सारी ऋषिरता मूर्छित भई भय उपर पडी. साराओने लाग्य के अना राम स्त्री गया छे. तेओ पाछा फरी गया. . २२ ऋषिदत्ता मानवां आवी अने निर्जनतानो लाभ लई नासवा मंडी. री पीडा पापती, असहाय अने क्षेकाकिनी ते रुदन करती आगळ वध वृक्षो आववा लाग्यां थे अवाणीओ आगळ वधती ते विताना आश्रम संभारी संभारी तेणे कल्पांत की मूकयुं न वृक्षवेलीओ अने पशुपंखी पण अना रुदन साथे रडी ऊठ्यां. जेम तेम शांत पडी. विचारखा लागी : " अकली स्त्रीने सतत भय. स्त्रीने अकली जोतां पुरुषोनी डाढ सकवळे. शुकवु ? याद आयु के पिताओ अक औषधि बतात्री छे जे कानमां राखवाथी स्त्री पुरुष बनी जाय. अने ऋषिदत्ता पुरुष तापस बनी ध्यान करती आश्रममा रही. हरिपेण पक्षे रौद्र, गुलसाने पक्षे भयानक, अभुत अने वीभत्स, ऋषि दत्ताने पक्षे करुण अने छेत्रटना भागतां अद्भुत अने शांत अम रसयोजना करी छे. "" कथानकता आ खंडां कवि जगतां साचो प्रेम घणीये वार आकरी कसोटीओ चढे छे. वनकरथनो प्रेम पण कसोटीओ चडवो. प्रियाविरहे प्रीतम विलाप करी रहयो. कांतानां रूप अने सद्गुणोने संभारी संभारी, तेदी साथे गाळेला सुखना दिवसोने याद करतो ते देवनी निन्दा करवा लाग्यो. विरहनी पीडा न सहेबातां ते मरवा तैयार थयो त्यारे समांसबंधीओओ जेनतेन समजावी रोकी राख्यो. पण तेनी स्थिति दयाजनक थई पडी दुःखधी दळता तेने आनंद मोहनी कोई बात रुचती न हती. नहोतो ते खाई शकतो, नहोतो सुखे सूई शकतो. प्रियतमानु स्मरण करी करीने पोतानी जातनो तिरस्कार करी रहेता तेने सौ धीरज आपवा लाग्या. Jain Education International अथदाती-कुटाती, अनेक मार्गां पोते रोपेलां पहोंची गई. पिताने अ गाळामां सुलसा पहोंची रुखमणी पासे अने तेने बधी वातथी वाकेफ करी, कुंवरीओ राजाने वात की अने तेणे फरी वार परणवा आववानुं कनकरथ माटे कद्देण मोकल्यु. हेमरथे पुत्रने खूब समजाव्यो ने पितानी आज्ञा माथे चडावी फरी अक वार कलकरथ रुखमणीने परणवा चाल्यो मार्गमा शुभ शुकन थया. रस्ते जतां पोते ऋषिदत्ताने परण्यो हतो ते आश्रम आव्यो. पूर्वनां स्मरण जागृत थयां हैंयु फाटवा लायु वन खावा धायुं धीमे धीमे ते जिनमंदिर पासे आव्यो. प्रियसंगल-सूचक इंगितो अनुभवतां विचारमां पड्यो. त्यां तो तापसवेषी ऋषिदत्ता पुष्पादिक लईने आवी. कनकरथने ते आपतां हाथनो स्पर्श थयो ने बनेने रोमांच थयो कुंवर तेने जोई रहयो. पत्ता समजी गई के प्रीतम हत्रे रुखनगीने परणवा जाय हे प्रश्नोत्तर था. ऋषित्ताओ तापस तरीके ज पोतानो परिचय आयो, तापसने जोतां पोतानी आंख घराती ज नथी म कुंबरे कह ने पूर्वजन्मना स्नेहने कारणरूप गणी तापसने पोतानी साथे कावेरी नगरी आवा दाण क. ऋषिरता मूंझाई. कारी कसोटीनां मूकाई गई. बहानां काय पण आखरे कुंवरना आग्रह वश थई ज ज पड्यु प्रीतिबद्ध से वे जीवो कावेरी पहोंच्या. विप्रलंभ शृंगारने पडखे कवि अहीं करुणनो पण असरकारक साक्षात्कार करावी दीघो छे. कनकरथ अने रुखमणी परण्यां ससराओ आग्रह करी जमाईने रोक्यो पियु पोताने हवे वश छे अम जाणी मदमत्त रुखमणी पतिने प्रश्न करी वेठी के ते मार्गमां तापसकन्याने कां परणी बेटो हतो ? अवु ते तेनामांशु हतु के कांचनीचनो भेद पण न परखायो ? जेने कारणे काबेरी जवानुं ज मांडी वाल्यु. ते तापसकन्या अवी ते केवी हती ! उदास हैये छतां अंतरना For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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