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.. अक दिवस राजाले प्रधानने बोलाव्यो, परंतु ते मोडो गयो. राजाओ ठपको आप्यो, "तु बुद्धिशाळी छे छतां ते ठपकार्नु कारण केम ऊभु कयु?" प्रधाने जवाब आप्यो, “ मारी पत्नी बहु प्रेमाळ छे. मे मारो विरह सहन करी सकती नथी.” राजाओ कहयु, “. पण अधिकारी तरीके तारे काम तो करवुज जोईने ?" आवु सांभळी मंत्री पोताने घेर गयो. राजाओ मंत्रीनी परीक्षा करवा माटे अने युद्धमा मोकल्यो. राजाने पगे लागी से युद्ध करवा नीकळी प्रड्यो. राजा अनी पास अनी मुद्रानी महोर घेरथी मंगावी लीधी. मंत्री सैन्यमां शोभवा मांड्यो. जबर युद्ध जाम्युं आ बाजु राजाओ मंत्रीनो प्रेम जाणवा अने घेर अनी स्त्री पासे चर मोकल्यो. आ जोई स्त्री समजी गई के “ नक्की भारो पति युद्धमा मृत्यु पाम्यो छे, नहि तो वीटी तेम ज मुगुट अकलां ज केम आव्यां ? " आप विचारी सरस्वती पण मृत्यु पामी. युद्धमा विजय मेलवी मंत्री पाछो आव्यो. अणे जाण्यु के पोतानी स्त्री वियोगथी मृत्यु पामी छे. आ सांभळी मूर्छित थई गयो. ठंडा उपचारथी जागृत थई घेर गयो. विलाप करवा मांड्यो, " हे प्रिये ! तारा विना बधी दिशाओ आंधळी थई गई छे." आम विलाप करता करतां ते साव मूढ बनी गयो. पोतानां माणसो के पारकांनां कोईने ओळखतो नथी. आम गांडा बनी गयो अटले राजाओ अने प्रधानपदेथी छूटो करी मूक्यो..
मेक वार से बहार नीकळयो. रस्तामां गंगा तरफ जतो कोई यात्री मळयो तेनी साथे चालवा लाग्यो. गंगा नदीमां जई “ सरस्वती, सरस्वती, सरस्वती, " अम त्रण वार वोली स्नान करवा लाग्यो. अक दिवस ध्यानी, ज्ञानी, अने मौन राखनारो साधु त्यां नहावा आव्यो तेने भानुमंत्री) नमस्कार कर्या. मुनिने पूछ्यु, “मारी स्त्री मरीने क्यां गई छे ? ' मुनि विभंग. ज्ञानथी जोयु ने कहथु, " गंगापुर गाममां सिंहदत्त नामना धनवाननी ते पुत्री थई छे. अत्यारे
अनुं नाम सुंदरी छे जे बहु ज दयावान छे. उमरमां बार वर्षनी थई छे. अना पिता पण अने विषे चिंतातुर छे के आने योग्य वर कोण मळशे ? यश अने बुद्धिमान तु मे सुदरी पासे जईश तो अने जातिस्मरण ज्ञान थशे अने से तने परणशे."
कोईकवार सुदरी त्यां नहावा आवी. भानुमंत्रीने स्नान करतो जोयो ने जातिस्मरण ज्ञान
भव जोयो अटले अना गळामां माळा नांखीने परणी गई. मातापिताओ जाण्यु अटले दंपतीने घेर लई गयां. आवा साहसिक कार्य माटे सत्कार को. आम भानुमंत्री गंगा नदी पासे गयो ने अनी स्त्री मेने त्यां मळी गई."
__भिन्न भिन्न कविओनी कथाओमां मळता आवा नानामोटा फेरफारो, ऋषिदत्तानी कथामांनां ते ते कविने जरूरी लागेलां रसस्थानोना सूचक गणवा करतां तो लोकमां पुष्कळ प्रचार पाम्याने कारणे सहजभावे जे केटलीक विगतो कथामां बदलाती चाले सेना साक्षीरूप गणवा से वधु ठीक लागे छे. बधी विगतोनो समग्रपणे विचार करीओ तो ते जमानाना प्रजामानसने तथा लोकरूढिओने जाणवा-विचारवानी सविशेष सामग्री आपणने आ बधामां मळे छे ज.
___ पात्रोनां अने स्थळनां नामोनी बावतमा अगाउनी अने जयवंतसूरिनी रचनामां केवा फेरफार छे ते हवे पछी आपेला कोठा परथी ध्यानमा आवशे. जयवंतसूरिना पुरोगामीओओ आपेला केटलांक वधारानां वर्णनो छेटे परिशिष्टोमा आप्यां छे.
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