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ढाल ७
राग वइराडो
आण्यउ कांननि नृप अकलउ, भूख तरस चिंता आकुलउ : अहवइ अवलंबी तरुडालि, तुरंगम तब मेहल्यउ भूपालि. मुडइ मुडई तरुथी ऊतरइ, राजा ते वन जोतउ फिरइ; तिहां दीठउं एक सरोवर चंग, मधुर ससिर जिहां नीर तरंग . जिम चिर विरही प्रीयु मुखदेखि, मनमांहि पांमइ हरख विशेषि तिम राजा रलीआइत थयउ, जिम ससि देखि चकोर गहगह्यउ मुख कर चरण पखाली करी, त्रिप्त थयउ ते जल वावरी; अति मीठां वनफल आहरी, राजाई रति पांमी खरी. नंदनवन सरिखुं वन तेह, जोतां पांयउ अधिक सनेह; दीठउ तापस आश्रम अंक, राजा चाल्यउ धरी विवेक.
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कच्छ महाकच्छ वंश शृंगार, विश्वभूति तापस सुविचार; ते कुलपतिनई कीध प्रणाम, श्रीहरिषेण राजाई तांम. निर्मल नाभिकुलोदधि चंद, ऋषभदेव तुम्ह धउ आनंद ; इम नृपनई ऋषि आसीसि देइ, माहोमांहि कुशल पूछेइ. अहवइ कोलाहल ऊछल्यउ, तापसलोक सयल खलभल्यउ; राजा कहइ मनि मांणउ भीति, को नहीं लोपइ तुम्हारी रीति. सकल सैन्य मुझ क्रम अनुसारि, अणि वनि आवइ छइ निरधार; अहवउं जांणी ऊठी राय, सकल सैन्य ऊतार्यां ठाइ. मुनिसेवा कारण ओक मास, तिणि वनि राजा राउ उलासि. तेणई ऋषभतणउ प्रासाद ओह कराव्यउ अति आल्हादि; विषहर मंत्र राजानई दीयउ, तपसि इतिथि धर्म इम कीयउ; हिव निज मंदिर आव्यउ राय, पालइ राज हरइ अन्याय. एक दिन राजसभाई काइ, आव्यउ दूत महामति साइ; विनयपूर्वक ते वीनती करइ, मनोहर वांणी मुखि उच्चरइ.
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