Book Title: Rushidattras
Author(s): Jayvantasuri, Nipuna A Dalal, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 174
________________ परिशिष्ट-५ जयवंतमूरिमां न होय तेवां पुरोगामीओओ आपेलां वर्णनोमांथी किंचित्' आख्यानकमणिकोष : रथमर्दननगरनुं वर्णन : मध्यदेशमां रथमर्दननगर छे. जेमा विलास करता रथो छे अने चक्रवाकनी शोभाथी युक्त सरोवर छे. ज्यां स्वजनोनो विरह नथी. जेमां फीणनां जेवां धोळां मंदिरो छे. जेणे पाताना पगना स्पर्शथी पृथ्वी पवित्र करी छे अने जेओ शास्त्रना भावने जाणनारा छे तेवा मुनिओ त्यां वसे छे. ज्यां कोई जातनो उपद्रव नथी अने जे धनधान्यथी भरपूर छे अ तमाम देशोमा शिरोमणि छे. ज्यां श्रावकोए पोताना बाहुबळवडे धन पेदा कयु छे अने दान देवामां तेओ कल्पवृक्षना माहात्म्यने पण नीचे पाडनारा छे. त्यांना राजा शक्तिशाली छे तेमज गयेली संपत्ति पाछी मेळववामां रस धरावनारा छे. तेमणे भारे पराक्रमथी शत्रुओने हराव्या छे. एवा एमना पराक्रमथी लाल थयेला नखोमां नमस्कार करतां सामंत लोको धन्यता अनुभवे छे. काबेरीनगरीनुं वर्णन : - काबेरी नदीथी जेनी शोभा वधेली छे. जेना महेलो आकाशने चाटे छे. जे नगरी धनधान्य तेमज मनुष्यथी युक्त छे. ज्यांना माणसो पासे चकचकतां पद्मरागनां रत्नो छे अने मोती, शंख तेमज परवाळां अढळक छे तेवी काबेरीनगरी छे. तेनुं वर्णन कोण करी शके ? सरोवरन वर्णन : ए सरोवर घणां झाडोथी युक्त छे ने तेनी आसपास वन छे. वनमां विस्तीर्ण शाखावाळां, पांदडावाळां ने सारा फळवाळां अनेक वृक्षो, संतापने हरनारां अनेक दृश्यो अने नयन तेमज मनने हरे तेवी मोहकता छे. सरोवर पोताना पाणीनी लहेरोवडे जाणे के कुमारने भेटतुं न होय ! अंदरनां कमळो जाणे के कुमारने अर्ध्य न आपतां होय ! अंदर तरता कलहंसोनो मनोहर अवाज अने गुंजारव जाणे कुमारना गुणगान न गातो होय ! हरिषेण तापसनु वर्णन : तापस फळ-फूल ने कंदनो आहार करतो. पोताना नियममां चुस्त हतो. घडपणथी एनां अंग ढीलां पडी गयां हतां. एना माथा उपर शरदना चन्द्र जेवा धोळा वाळ हता. माथानी जटा जाणे के पक्षीना आश्रय माटेनुं कल्पवृक्ष न होय ! शरीर उपर शरदना वादळ जेवी भस्म लगाडतो. ते एवी लागती जाणे के शरीर उपर पुण्यलक्षमी ना आवी होय ! आ तापस आश्रमनो संरक्षक हतो अने तत्त्वज्ञानना प्रकाश करनारो हतो. पोतानी मर्यादाने पाळनारो-खूब सत्त्ववाळो-मेरु पर्वत जेवो भारे अने लोकोमा मध्यस्थ हतो. १. संस्कृत-प्राकृत रचनाओमाथी गुजरातीमा सार आप्यो छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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