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युद्धनुं वर्णन :
" अकाळे युद्ध थयु. झुलवाळा हाथीओनो समूह परर पर भीडायेलो छे. घोडानी खरीओथी धूल उडतां सूर्य ढंकाई गयो छे. वेगथी रथो चालता होवाथी दिशाओ बहेरी थई गई छे. खडगथी कपायेला हाथीना कुंभरथलोमांथी गळता लोहीनी नदीनी अंदर यान अने जंधान तरे छे. जय मेळववा माटे लुब्ध सेवा बन्नेनु युद्ध अनेक जीवोनो जान लेनार थयु. भयंकर विनाश सायलो जोई दयालु अंवा कुमारे बाहुयुद्ध करवा अरिदमनने समजाव्यो. तेमां कनकरथे अरिदमन उपर विजय मेळव्या. नागपाशथी राजाने बांधीने वश करी दीधो. अरिदमन हारी गयो. हवे राज्यमा शु मोढुं बताक्वु ! तेने वैराज्य उत्पन्न थयो ने दीक्षा ग्रहण करी." आ वर्णन नेभिचन्द्र, आसड अने अज्ञात कवि ऋणेय लगभग सर आपे छे.
अरिदमनना पुत्र श शल्ये उगारे जाण्यु के पिता दीक्षा लंधी छे त्यारे से अमनी पासे गयो. पिताने विनंति करी, “ राज्य पार्छ ग्रहण करो ने शांतिथी जीवो.'' पिता जणावे छे के " संसार कडवो झेर जेवो छ अने लक्ष्मी अस्थिर छे माटे मने अनो खप नथी." तिानी वाणीथी मे पण जिनधर्ममां रत थाय छे अनो राज्याभिषेक थाय छे अने से राज्य करे छे. भेना राज्याभिषेक वखते घणा राजाओ. मंत्रीओ हाजर रहे छे.
हरिषेण राजा अजाण्या घोडा उपर सवार थईने जाय छे त्यारे घोडो मेने छोडी दे छे. से विश्वभूति तापसना आश्रममां जाय छे. त्यां विश्वभूतिने पूछे छे के “ मारे पैसानो सदुपयोग करवो छ तो केवी रीते कर" विश्वभति समजावे छे के मोटा मोटां मंदिरो बंधाववाथी प्रतिम पधराववाथी, जिनप्रासाद बंधाववाथी, प्रभावना करवाथी पैसानो सदुपयोग थाय छे. आ प्रमाणे यायथी पैसा कमाई जे मंदिर बंधावे तेने साम्राज्य प्राप्त थाय अने तेनु कल्याण थाय धनश्रेष्ठीनी जेम. अज्ञात कवि अही धनश्रेष्ठीनी अवान्तर कथा रज़ करे छे.
हरिषेण राजा मंगलावती नगरीमां प्रीतिमतीनु विष उतारवा जाय छे. मंत्रथी विष उतारे छ त्यारे पुत्री आळस मरडीने ऊभी थाय छे. प्रियदर्शन राजा पुत्रीने खोलामा बेसाडी पूछे छे : “तने शी तकलीफ थाय छे।" पुत्रीओ कहा: “मने कांई ज थतु नथी. बधां भेगां केम थयां छो?', " हे पुत्री ! तु मृत्यु पामी छे अम जाणी तने स्मशानमा लाव्यां ने चिता तैयार करावी छे. आ अकारण परोपकारी राजाओ तने प्राण पाछा आप्या छे." पुत्री) कहथु : “ मारा पुण्यने लीधे अणे मने सारी करी. में पण मारा प्राण अने आप्या छे." राजाओ कहा : " ते योग्य ज कर्य छे." आ सांभळी हरिषेणे जवाब आप्यो, “ह तो दीक्षा लेवानो छ ने तपोवनमां जवानो छं. तारी कन्या वीजाने आप." प्रीतिमती) कहयु : “ मारे कोई बीजो माणस अग्नि समान छे. " आ उत्तर सांभ की हरिषेण प्रीतिमतीने परण्यो. आ विगत आख्यानकमणिकोशमा छे.
हरिषण राजा पुत्र अजितमेनने राज्यभार सेपी दीक्षा ग्रहण करवानो विचार करे छे. तेणे राणीने कहयु: "तु पैसा जेटला जोइओ तेरला ले ने घरमां रहे. हु संसारथी विरक्त थई गयो छु ने तापसव्रत ग्रहग करवानो छु.” राणी आंखमां पाणी लावी बोली : “ वृक्षनी छाया वृक्ष वगर रही शक नहीं, मेवी ज रीते तमारा बगर हुपण घरमां रहीश नहीं. हे स्वामी !
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