Book Title: Rushidattras Author(s): Jayvantasuri, Nipuna A Dalal, Dalsukh Malvania Publisher: L D Indology AhmedabadPage 39
________________ तमारी गति ते मारी गति." आम कही बन्ने तापसवन ग्रहण करे छ. आ वात आख्यानकमणिकोशमां आपी छे. कनकरथ हरिषेण तापसना आश्रममां आवे छे. ऋषिदत्ताने जूझे छे. कनकरथ अने ऋषिदत्ता बन्ने वच्चे परस्पर प्रेम जाग्यो छे से जाणी हरिषेण ऋषभदेवना मंदिर पासे बन्नेने परणावी दे छे. लग्न थया पछी कनकरथ हरिषेणने ऋषिदत्ता विषे वृत्तांत पूछे छे. हरिषेण सर्व हकीकत जणावे छे. आम सहजसुदरकृत कथामां प्रथम कनकस्थ ऋषिदत्ताने परणी जाय छे ने पछी मे कोनी पुत्री छे ते हकीकत जाणे छे. आ तो “ पाणी पीने पूछे घर ' तेना जेवी वात छे. हरिषेण तापस कनकरथने ऋषिदत्ता विषे वृत्तांत कहे छे तेमां प्रथम अबु जणावे छे के " मत्तीयावई नगरीनां हरिषेण राजा राज्य करे छे, अनी पत्नीनु नाम प्रियदर्शना छे. अने मेक पण पुत्र नथी तेन राजाने असहय दुःख छे. दुःखी थयेलो राजा उगवाळो छे. पतिने दु:खी थयेला जाणी राणी सचन करे छे के “ पुत्रनी प्राप्ति माटे कुलदेवीनी आराधना करो." राजा शुद्ध श्वेत वरत्रो पहेरी, ब्रह्मचर्यव्रत धारण करी, हाथां माळा लई कुळदेवीना शिरमां गयो, त्यां अभनी पथारीनां सूतो. त्रण दिवस उपवासवत आदर्य. तपथी प्रसन्न थयेली कठदेवीने कह: मने पत्र आप" देवी कहय : जे आपवानं विधिले निर्माण कयुज न होय ते देवो आची शकता नथी.” राजा कहा: मारा वडीलोनी तारा तरफनी भक्ति याद कर ने पुत्र आप, नहीं तो तलवारथी हुमार मस्तक उडावी ईश". राजाओ तलवार खेंची माथु उतारवानी तैयारी करी त्यारे प्रसन्न थई देवी कहथु : “ तने पुत्र थशे." आम अजितसेन नामनो पुत्र जन्म्यो . आ विगत आख्यानकमणिकोशमां ज आपी छे. . कनकरथ ऋषिदत्ताने परणीने आश्रममांथी विदाय ले छे त्यारे ऋषि पासे शिखामण मागे छे. ऋषि कहे छे : “ तु रुखमणीने परणवा जा." कुमार जवाब आपे छे : “ हमणां तो तमारी पुत्रीथी. ज स्त्रीना संबंधमां कृतार्थ थयो.छु'. अने तेथी रखमणीने परणवानो विचार मथी." आ सांभळी ऋषि जमाईने शिखामण आपे छ : “ हे कुमार ! तु लक्ष्मीथी ठगातो नहीं. विद्यानो अहंकार करीश नहीं. गुणनो गर्व न करतो. मारी पुत्री भोळी छे, ते आश्रमभां उछरी छे अने शहेरना कपटथी अज्ञात छे तेथी अना उपर गुस्सो करीश नहीं. मारी दीकरीने छोडी न देतो." जनाईने आ जातनी तापस हरिषेणे आपेली शिखामण मात्र आल्यानकमणिकोषमा ज छे. . ऋषिदत्ताने परणावी हरिषेण तापस अग्तिप्रवेश करे छेतेन ज, अषिदत्ताना जन्म पछी अनी माता सूआरोगथी मृत्यु पानी छे अघी विगत लगभग बधी ज कथामां आवे छे. ओक सहजसुंदर ज अत्री विगत आपे छे के ऋषिदत्ता स्मशान पांथी सीधी ज ऋषिपिताना आश्रमे आशा आवे छे के अने मातापिता मळशे अने अनी सारसभाळ लेशे. परंतु ज्यारे अणे त्यां जई जाण्यु के ओ तो परलोक सिधाव्यां छे त्यारे मे कल्पांत करे छे. आ तद्न भिन्न हकीकतथी आपणे अटलं तारवी शकीओ के ऋषिदत्ता सासरे विदाय थई ने विपरीत संजोगोमां पाछी आवी ओ गाळामां अना मातापिता मृत्यु पाम्यां हशे. अज्ञातकविकृत कथामां अवु आवे छे के हरिषेणना मृत्यु पछी भेना जमाई कनकरथे तापस ससरानो यादमा चैत्यस्तंभ बनाव्यो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org www.jainelibrary.orgPage Navigation
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