Book Title: Ritthnemichariu
Author(s): Sayambhu, Devendra Kumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 31
________________ फिर भी जब राजा श्रेणिक कहता है कि दूसरे मत में हरिवंशकया उल्टी-उल्टी सुनी जाती है, जैसे नारायण नर की सेवा करते हैं, बलराम लेती करते हैं, घोड़ों का संवरण करते हैं। धृतराष्ट्र और पाण्डु का जन्म नियोग से हुआ, द्रौपदी के पाँच पसि बताये जाते हैं। इस प्रकार असत्य कथन किया जाता है । भीष्मपितामह के बारे में श्रेणिक को शंका है कि यदि उन्हें इच्छा-मरण का वर प्राप्त था तो उन्होंने कालगति क्यों की? द्रोणाचार्य धनुर्विद्या में अजेय थे तो उनकी मृत्यु क्यों हुई? कर्ण यदि कान से जन्म लेता तो उसे जन्म देने वाली कुन्ती क्यों नहीं मर जाती? क्या मनुष्य घड़े से उत्पन्न होता है ? फिर कुरुकुलगुरु अगस्त घड़े से कैसे पैदा हुए ? भाई आपस में कितने ही लड़ें, वे एक-दूसरे का खून नहीं पी सकते । यस्तुत: ये शंकाएं स्वयं के समय की हैं, जिनका समाधान खोजने के लिए अन्य अन पुराणकारों की तरह कवि ने भी रिटठणेमिचरित' की रचना की । गौतम गणधर, राजा श्रेणिक के प्रश्न के उत्तर में, जो कुछ कहते हैं उसका सार इस प्रकार है... हरिवंश में दो प्रमुख पुरुष हुए शूर और सुवीर' जो क्रमशः शौरीपुर और मथुरा के राजा थे। पर से अंधकवृष्णि जनमे और सुधीर से नरपति वृष्णि । अंधकवृष्णि का विवाह पाराशर की पुत्री और व्यास की बहिन सुभद्रा से हुआ जिससे उसे दस पुत्र उत्पन्न हुए.-१. समुद्रविजय, २. अक्षोभ्य, ३. प्रजापति स्तिमितसागर, ४, हिमगिरि (हिममान), ५. अचल ६. विजय, ७. धारण, ८. पूरण, ६. अभिचंद और १०. वसुदेव। ये दस चर्मों के समान थे और 'दशाह' (दस योग्य) के नाम से प्रसिद्ध थे। इनके अतिरिक्त दो कन्याएँ थीं-कुन्ती और मद्री। मथुरा के राजा नरपतिवृष्णि को पत्नी पद्मावती से तीन पुत्र (जग्रसेन, महासेन और देवसेन) तथा एक कन्या (गांधारी) थी। इसी समय मागधमण्डल में राजा जरासंध अत्यन्त समझ और शक्तिशाली हो उठा था । उसके पिता का नाम वृहद रथ था जो राजगृह नगर का स्वामी था। वृहद रथ, राजा वसु के पुत्र सुबसु की परम्परा में हुआ। जिसने नागपुर में राजधानी की स्थापना की। जरासंघ की पट्टरानी कालिन्दीसेना थी। जरासंघ के अपराजित आदिकई भाई थे। उसका प्रभाव दूर-दूर तक था। एक दिन शौर्यपुर के गन्धमादन पर्वत पर सुप्रतिष्ठ मुनि प्रतिमायोग में ध्यान - लीन थे । १. जैन परम्परा के अनुसार पहला वंश इक्ष्वाकुवंदा था। उससे सूर्यवश और चन्द्रवंश उत्पन्न हुए। इसी समय कुरुवंश और उग्रवंश तथा अन्य दूसरे वंदा उत्पन्न हुए। तीर्थकर शीतलनाथ के समय हरिवंश की उत्पत्ति हुई । जम्बूद्वीप के वत्सदेश की कौशाम्बी नगरी का राजा सुमुख था। वह वीरक सेठ की सुन्दर पत्नी वनमाला का अपहरण कर लेता है। विरह से व्याकुल सेठ दीक्षा ग्रहण कर तप करता है और मरकर प्रथम स्वर्ग में देव होता है। राजा सुमुख-दम्पती भी बाद में जैन धर्म धारण कर, दूसरे जन्म में विजयाच पर्वत पर. 'आर्य और मनोरमा नामक दम्पप्ती होते हैं। पूर्वभव के बैर के कारण देव (सेठ का जीव विद्याओं को भेदकर उन्हें चम्पापुर में छोड़ देता है। आर्य अपनी पत्नी के साथ वहीं का राजा बन जाता है। उसका पुत्र 'हरि' हुआ। इसी राजा की परम्परा में कुशाग्रपुर (राजगृह) में राजा सुमित्र हुआ। उसकी पत्नी का नाम पद्मामती था। इन्हीं से मुनिसुदत (बीसवें) तीर्थंकर का जन्म हुआ। मुनिसुव्रत तीर्यकर का पुत्र सुन्नत था । उसका पुत्र दक्ष । जसके इला नाम की पत्नी से ऐलेय नामक पत्र और मनोहारी कन्या थी।

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