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[सयंभूएवकर रिटुमिचरिए गन्धित बसुएउ-कुमार। विष्णु महारष्ट्र सी जुत्तारें। दुइसहास-संवणहं रउद्दहं । छह गंधुवर मतगइवह।। हपहं चउदह वप्पतालहं। भिडियह वलई वैवि अवरोप्पर ।
एउ उच्छलिउ भरंतु दिगंतरु॥ पत्ता-- मत्त मयंग-मयंगहं सुरंग-तरंगह रहबर-रहबरबंदहं । जोहजोइहं महारणे रोहिणि कारणे रिव-रिवहं ॥५॥
उत्पति साहणाई।। चाउरंग-बाणाई॥ सुटुबद्ध-मच्छराई। तोसियामरमराई। एकमेका-कराई। कोतिकोहि चोविकराई॥ बाणजाल-छाइयाई। धूलिवाउ-धूसिराई। पाउहोह-जज्जराई। दंतिवस-पेल्लियाई ॥ सोणियंब-रेल्लियाई। धोरघाय-भिभलाई। णित-अंत-चोभलाई। सिक्खपग्ग-खंडियाई॥ भल्लुयार-बाउलाई।
पोरगिद्ध-संकुलाई॥ के साथ महारथ दे दिया। दो हजार भयंकर रथ, गंध से उद्धत छह हजार मत बाले हाथी, दर्प से उद्धत बौदह हजार घोड़े। इस प्रकार दोनों सेनाएं आपस में भिड़ गई। दिशाओं में फैलती हुई धूल उठी।
पत्ता-उस महायुद्ध में मतवाले हाथी मतवाले हाथियों से, घोड़े घोड़ों से, श्रेष्ठरथ श्रेष्ठ रथों से, योद्धा योद्धाओं से तथा राजा राजाओं से रोहिणी के कारण भिड़ गए ।।५।। ___ चतुरंग वाहनों वाली सेनाएं उछलती हैं, अत्यन्त मत्सर (ईया) से भरी हुई, देवों और अप्सराओं को संतुष्ट करनेवाली, एक-दूसरे को ललकारती हुई, भालों के किनारों से चूकी हुई, तीरों के जाल से आच्छावित, धूल और हवा से धूसरित, आयुधों के समूह से अजर, हाथियों के दांतों से हटाई जाती हुई, रक्तजलों से प्रवाहित होती हुई, भयंकर आघातों से विम्बल होती हुई, जिनकी आंतें और चोटियों ले जाई जा रही हैं ऐसी पैनी तलवारों से खंडित, भालुओं के शब्दों से व्याप्त और भयंकर गीषों से संकुल है। बब शत्रुपक्ष सिंह के