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ह जामि सहो पासु फणिवहो । जिस रासणभारु परागिउ । जैम सम तिम सो सम्मान ॥ एम भणेषि, पर बेमि ग आमहं ।
मग विबारिउ तामहं ॥ अच्छहि तथ्य साथ गिच्चितज । उह भर मह संधोरि घितउ ॥ जेहि थिय वालमहागह खीलिथि । पूणर्धारय जेहि आकोलिषि ॥ वयस चंचु हि रणे तोडिय हिउ रिट्ट जमलज्जण मोडिय ॥
[भएase चिरिए
घता- - गिरिगोयणु उद्धरित सत्ता जेहि परांडे । मंग णत्थियंतु घुषं तेहि भुवं हि ॥ १४ ॥
इय रिट्ठणे मिचरिए धवलयासिय सयंभू एवकए गोविंदबालकलाणामो पायी पंचमो सग्गो ॥ ५ ॥ ॥
१. अ-सोहि ।
गोविंद की रक्षा करो, उस नागराज के पास में जाऊँगा । जिस प्रकार कमलों का भार आया है, जिस प्रकार का समय है, उसका उसी प्रकार सम्मान करो।" यह कहकर, जब तक नन्द पैर नहीं दे पाये, कि तभी श्रीकृष्ण ने उन्हें मना किया - "हे तात, आप निश्चित रहिए, वह भार मेरे कंधों पर डाल दिया गया है। जिन से बालक महायहों को कीलित करके स्थित था, जिन से उसने पूतना को पीड़ित कर पकड़ लिया, जिन हाथों से उसने कोए की चोंच तोड़ी, अरिष्ट को मार दिया और यमलार्जुन को मोड़ दिया ।"
पत्ता-जिन प्रचंड हाथों से सात दिन तक गोवर्धन उठाया, उन्हीं मेरे हाथों से कालिया नाग को नापते हुए देखो ॥। १४॥
इस प्रकार घवलश्या के आश्रित स्वयंभूदेव कवि द्वारा विरचित गोविद बाललीला नाम का पाँचवाँ सर्ग जानना चाहिए।