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छट्टो सग्गो
सिरिरामालिगिय यच्छतु पहन करेपिणु णीसरह । कमलागरे कपलगिमिने इउमामावति पसरह॥
मुसुमूरिय-मायासंवर्षण। लक्लिज्मा जयणा अणहषेण ॥ अलिबलय-जलय-कुवलय-समय। रवि-भइएक पंणिसितलि णिसण ॥ गंपसुपरंगण-रोमराह । + वहमयण कटिणि पिराइ॥ वणीलमणि-भरियवाणि। गं कालिपाहि-महिमाम हाणि ॥ लाह कालि णिहालिषि आय सष्ष। गामीण-गोव जायव सगव्य॥ पिय भावणदेवि धरित्तिमगे। मोइज्जइ साहस सुरेहि सग्गे ।। आहोशिउ रणुतणमदणेण। जवणावह देवइ-णवणेण॥ संखोहिय जलया जलु वि स । णीसरिउस पसरिजरठदु॥
जिनका वक्षस्थल लक्ष्मीरूपी रमणी से आलिंगित है ऐसे कृष्ण प्रतिज्ञा करके कमनों के लिए यमुना महादह सरोवर में प्रविष्ट होते हैं।
मायावी रथ को चकनाचूर कर देनेवाले जनार्दन ने भ्रमर समूह, जलद और नीलकमल के समान रंगवाली यमुना नदी को इस प्रकार देखा मानो सूर्य के डर के कारण निशातल पर बैठी हुई हो, मानो बसुधारूपी वरांगना की रोमराजि हो, मानो दग्ध कामदेव की करनी पोभित हो, मानो इन्द्रनील मणियों से भरी हुई खान हो, मानो कालिया नाग के अभिमान की हानि हो । उस अवसर पर, ग्रामीण गोप और यादव सभी लोग गर्व के साथ देखने आये। भवनशसिनी देवी धरती के मार्ग पर स्थित हो गयी। स्वर्ग में देवगण तथा विद्याधर राजा देखने लगे ! दानवों के शरीरों को चकना-घूर करनेवाले देवकी के पुत्र ने यमुना सरोवर को भालोहित कर दिया । भयंकर सांप निकला और फैल गया।
१.म-मिसट् । ३. -मरट् ।