Book Title: Ritthnemichariu
Author(s): Sayambhu, Devendra Kumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 132
________________ अट्ठमो सम्गो] अहिसि घिउ पुणु किउ पट्टयषु॥ गज धज सुरिवहीं पातु जाम । सिवएवि-गम्भहाँ सोहणं ताम ॥ आयउ सत्तारह वेवयाउ। दसलयपरिवारिय अवयराज ।। पसमिसि वैवयज सवाहणा। विविहलय-विविह-पसाहणाउ ।। उपनय-चप्पहरण-पहरणाउ। सिपचामर-आयब-वारणाज ।। विज्तुलकुमारि वरबुद्धि फित्ति । जयलपिछलजसिरि' परमतिति। सव्वाज सस्वासंकरियाउ। मंजीर-राव-झकारियाउ ॥ सिषए वि-पास पक्रयाउ । णिय-णिय णियोअणि चक्कियाउ॥ घसा -चंदकंतपह-धवलियधामे जामिणि जामे पच्छिम आए। पल्लंकोवरि णिगयाए सोलह सिविणई विदुई सिवाए ॥३॥ गज-गोवइ-हरि-सिरि-दामडयलु। मयलंधण-विणमणि-मीण-जुयलु॥ सकलसु-कमलायर कमलवाणु। सायर-सौहासणु-सृरविमाणु ।। माहिहेलणु-मणिगण-अलणजालु । गया । जब तक कुबेर देवेन्द्र के पास गया, तब तक शिवादेवी के गर्भ का संशोधन करने के लिए सत्तरह देवियां आयौं । एक हजार देवियों से घिरी हुई वे अवतरित हुई। वाहनों सहित देविया दसों दिशाओं में थीं । विविध ध्वजाओं और प्रसाधनों वाली उन देवियों ने वर्ष का हरण करने वाले अपने अस्त्र निकाल रखे थे। वे श्वेत चमर और छत्र धारण किये हुए थीं । विद्युत्कुमारी, श्रेष्ठा, बुद्धि कीर्ति, जयश्री, लज्जा, लक्ष्मी, परमतृप्ति सभी देवियां सब प्रकार के अलंकारों से अलंकृत थौं । अपने नूपुरों की झंकार करती हुई वे शिवादेवी के पास पहुंचीं । वे अपने-अपने काम में निपुण थीं। प्रता-चन्द्रकान्त मणियों की प्रभा से पलित प्रासाद में रात्रि का अन्तिम प्रहर बीतने पर पलंग पर सोती हुई शिवादेवी ने सोलह स्वप्न देखे ।।३।। गज, गोपति (बैल), सिंह, लक्ष्मी, दो मालाएं, चन्द्रमा, सूर्य, दो मस्स्य, कलश सहित कमलों का समूह, सरोवर, समुद्र, सिंहासन, देवविमान, नागलोक, मणि समूह और अग्नि । १.अ-आयवधारणाडा २.भ--जल्लसिरि। ३. अ-जामह।

Loading...

Page Navigation
1 ... 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204