Book Title: Ritthnemichariu
Author(s): Sayambhu, Devendra Kumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 176
________________ एयारहमो सग्गो] घप्ता--रणरसिएं कियकलयलेण वज्मिय पर पछह यमालें । मेदिउ यम्म साहणेण विजमहरि ओम घण जालें ॥६॥ उत्थरिउ बालरिउ साहणहो। रहतरय-महगायवाहणहो। णं गिम्ह-वम्गि बंसवणहो। णं गरुड-भुयंगविसमगणहो ॥ णं करिसंधायहो पंचमुह । गं अगहू सणिच्छरु थिर समुह ।। गय दमइ ग दम्मद गयदरहिं । हर हणइ ण हम्मद यवरेहि ।। रहणं दल दलिज्जइ णवि रहे हि । वितरई सिरई दसदिसिवहेहि ॥ पण्णसि-पहावें सयलुबलु। मंवरेण महिउणं उवहिजलु ।। णं भग्गु गई फमलवणु। साहारुणं बंधन सरणमणु ।। हर-गए-रह-गर-रिक दलिप । सयहि मि पिजल वाबि भरिय ।। घता-भरिय ढंकणु चेविसिल अण्णु पडिएंतु णिहालइ । अमु करंतु कलेवडज सालणं गाई पडिवालइ ॥१०॥ घसा-सेना ने कामदेव को घेर लिया, मानो मेघजाल ने विध्यागिरि को घेर लिया हो III वह बाल शत्रु जिसके पास रथ, अश्व, महागज और वाहन थे, ऐसे सैन्य के ऊपर इस प्रकार उछला मानो मांसों के वन पर ग्रीष्मवह्नि उछली हो । मानो सांपों के विषम समूह पर गरुड़ हो, मानो सिंह हाथियों के समूह पर हो, मानो विश्व के सम्मुख शनि हो। गज दमन नहीं करता, और न गजवरों के द्वारा कह दमित होता है । इसी प्रकार अयन न तो मारता है, और न अश्ववरों के द्वारा आहस होता । रथ दलन नहीं करता, औरन रथों के द्वारा दला जाता है । दशों दिक पथों में सिर बिखरे हुए हैं। प्राप्ति के प्रभाव से समस्त सेना उसी प्रकार मथ दी गयी जिस प्रकार मंदराचल से समुद्र मथ दिया जाता है, मानो गजेन्द्र ने कमलवन को नष्ट कर दिया हो। शरण की इच्छा रखनेवाले सैन्य को द्वादस नहीं बँधता। अश्व, गज, रथ, नर और राजा पराशायी हो गये, उन सबके द्वारा जैसे वावड़ी भर दी गयी। घसा-भरी हुई वाकड़ी पर शिला ढककर वह दूसरे शत्रु को उसी प्रकार आते हुए देखता है जैसे कलेवा करता यम सालन (कढ़ी की तरह एक खाद्य) की प्रतीक्षा करता है ।।१०।। १. प्र—उवडियउ।

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