Book Title: Ritthnemichariu
Author(s): Sayambhu, Devendra Kumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 179
________________ १३६] [सयंभूएवकए रिट्टणेमिचरिए सुम-जणणहं अविणये अत्ति किया धत्ता-ताम पराइउ देवरिसि म वेवि अकारण अचाहो । करेवि परोपर गोसखउ मा कवण यत्ति जहिं सुजमाहो ॥१३॥ पिणिवारिय विषण वि मारण : जिह धरियमेह अंगारएण॥ मघरोहिणि उत्तरपतएण। तिह तावसेण दुषर्कतएण ॥ ओसारिय संवर कुसुमसर। जुझतह जगे जपणउ पर॥ सुयजणण हो विगह कवषु किर । बुल्लंधण-लंघिय तथसि-गिर ।। प्रिय विपिणवि रणु उपसंधरिवि । पुत्ततणु तायतणु करेवि ॥ पति "पंग मातुरः । उषित कालसंवरहो बस्तु ॥ तो भणह महारिसि कित्तिएण हाई एन्थ पराइड एत्तिएण ॥ एहु चरम बेहु सामण्णु गवि । भय रद्धर हरिकुल गयण रवि ॥ घत्ता--असुरें हिउ पई बढादियउ सीमंधरसामें सिट्ठउ । एह सो गंदणु रुपिणिहे म कहलि किलेसें विट्ठउ ॥१४॥ पिता ने अधिनम को स्थिरता दी है।" पत्ता- इतने में वहाँ नारद पहुँचे (और वोले)-"तुम दोनों अकारण मत लड़ो, परस्पर गोत्र का नाशकर वह कौन-सी स्थिति है जहाँ तुम शुद्ध होते हो ?॥१३॥ नारद ने दोनों को रोक दिया । जिस प्रकार भघा और रोहिणी के उत्तर में प्राप्त मंगल मेधों को रोक देता है, उसी प्रकार पहुँचते हुए मुनि नारद ने कालसंवर और कामदेव को हटा दिया (यह कहते हुए) कि लड़ते हुए दुनिया में तुम्हारी निन्दा होगी। पिता और पुत्र के बीच युद्ध कैसा? तपस्वी की वाणी दुलंध्य का भी लंघन करनेवाली होती है । दोनों युद्ध बन्द करके स्थित हो गये, पितृत्व और पुत्रत्व का सम्मान करते हुए। प्रज्ञप्ति के प्रभाव से, कालसंबर का अतुल बल सैन्य उठ खड़ा हुआ। तब महामुनि कहते हैं-कि यह किस तरह यहाँ पहुँप सका ? यह घरमशरीरी है, सामान्यजन नहीं है, कामदेव और हरिवंशरूपी आकाश का चन्द्रमा ___घता—सीमंधर स्वामी ने कहा है कि असुर के द्वारा ले जाया गया और तुम्हारे (कालसंवर के) द्वारा बड़ा किया गया यह रुक्मिणी का वही पुत्र है जिसे मैंने बड़ी कठिनाई से किसी प्रकार देख लिया ॥१४॥

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