Book Title: Ritthnemichariu
Author(s): Sayambhu, Devendra Kumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 192
________________ [१४६ बारहमो सगो] पभणइतबसि पेक्यु परमेसरि। जायवगयहं भिडंतज केसरि ।। तहि अवसरे बल हुक्की हूयउ । माई कयते पेसित वयउ॥ सो सहसत्ति कुमार पेल्सिउ । णिच्चलु मोहिषि भिषि मेल्लिउ ।। केण वि कहिउ गपि गोदियहो। वुदम-वाणव वेह-विमद्दलहो ।। देष-वेव साहण तह केरन । रण जहि केण वि शिव विवरेरउ ॥ असा हरि रहे चकित तुरंतु सारंग-विहास्यु पावा । महिहर-सिरि सचाउ गज्जत महाधणु णाषद ॥१४॥ बुदम-दारुण-दणु-तणु घायण। विष्णियि भिडिय मयण-णारायण ।। विविवि पंजमहाहिक अंघज । चिण्णिावि मयरकेड गाउ विणिधि सुरघर-णयणाभवण। विण्णिवि रुप्पिमिरेवडणवण ।। विणिवि समरसएहि-समत्या। कसभषणु-सारंगविहत्या ॥ विग्णिवि पयल महियल-गामिय। मेहकूस-दारापद-सामिय॥ विहि एक्कु वि ण एमोवागह। विहिं एक्कहो विण पहरणु लग्गह ॥ कहते हैं:-"हे परमेश्वरी देखो, यादवरूपी गजों से यह सिंह लड़ता है। उस अवसर पर बलराम एकदम पास पहुंचे मानो यम ने अपना दूत भेजा हो, तो कुमार ने सीघ्र उन्हें हटा दिया और मोहित स्तंभित कर, निश्चल छोड़ दिया। किसी ने दुर्दम दानयों का दमन करनेवाले गोविन्द से जाकर कहा, "हे देव देव, तुम्हारे सैन्य को युद्ध में किसी ने विपरीत-मुख कर दिया है।" पत्ता--श्रीकृष्पा रथ पर चढ़कर तुरन्त धनुष हाथ में लेकर दौड़ते हैं, मानो महीधर के शिखर पर इन्द्रधनुष सहित महामेघ गरज रहा हो ।।१४।। दुर्दम और भयंकर दानवों के शरीरों का घात करनेवाले मदन और नारायण दोनों आपस में भिड़ गये। दोनों ही देवदरों के नेत्रों के लिए आनन्ददायक थे । दोनों क्रमशः रुक्मिणी और देवकी के पुत्र थे। दोनों सैकड़ों युद्ध में समर्थ थे, दोनों के हाथ में कुसुमधनुष और सारंग थे। दोनों आकाशतल और महीतल पर विचरण करनेवाले थे। मेघकट और वारावती के स्वामी थे। दोनों में से एक, एक पर आक्रमण नहीं कर पाता पा । दोनों में से एक का अस्त्र एक को नहीं लगता था । इतने में दोनों के बीच नारद आ गये (मौर बोले), "हे नारायण, यह

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