Book Title: Ritthnemichariu
Author(s): Sayambhu, Devendra Kumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 194
________________ तेरहमो सग्गो पुरि पइसारिय उ परिणाविउ बालउ । कुरवा - गरबद - सुन - उबहिहीमालउ ॥ णारायण-णयग-मणोहिराम । पच्चारिप हप्पई सच्चाहाम " कोई मानवहिणि मुबाम अज्छु । भवामि सिह किर कवणु घोज्न । रक्षहु तुहकेरउ सामि सालु। महसूअण अवह कामवालु ॥ अह संभरु भागकमारुपुत। भद्दावणु बरिसावमि णिहसु ॥ तं वयम् सुप्पिा भगद भाम । पयभंगप्पाइस तिविह पाम ।। णियणक्षण-गवणि जइवि जाय। किह सह महें गीरिय वाय॥ जो मउ गउ कालसरेण खड़। आवाय जि कहि पई गुत्त लक्ष । वेयारिय आएं तावसेण। मह मजा लिय तामसेण ॥ पत्ता--सच्चा चिर गयउ कहि वीस गंदणु। भामए भामि पउ भम" भमन जणदण ।।६।। - वसे नगर में प्रवेश दिया गया और कुरुराज की पुत्री बाला उदविमाला से उसका विवाह कर दिया गया। छ। नारायण के नेत्रों के लिए सुन्दर रुक्मिणी ने सत्यभामा को ललकारा-'हे बहिन ! तुम्हें आज नहीं छोडूंगी, तुम्हारा सिर मुश्वाऊंगी। इसमें आश्चर्य की क्या बात ? स्वामीश्रेष्ठ मधुसूदन (कृष्ण) कामबाला की रक्षा करें । तुम अपने पुत्र भानुकुमार की याद करो। निश्चित ही सिर का मुंडन दिखाऊंगी।" ये वचन सुनकर सत्यभामा कहती है तीन तरह से तुम्हारा वचन मंग हुआ है । मद्यपि तुम अपने पुत्र से गर्वीली हो रही हो, फिर भी तुम्हारे मह से यह बात कैसे निकली? जो मर गया और काल द्वारा खा लिया गया, अचानक उस पुत्र को तुमने किस प्रकार पा लिया ? इस तपस्वी (नारद) ने तुम्हें प्रवंचित किया है और तुम्हें मुझे भिड़ा दिया है ।" पत्ता-सचमुच बहुत समय से गया हुआ बालक कहाँ दिखाई देता है। सत्यभामा के द्वारा घुमाए गये जनार्दन धूमते हैं ।।१।।

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