Book Title: Ritthnemichariu
Author(s): Sayambhu, Devendra Kumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 158
________________ दहमो सग्गो उज्जत-महागिरिधर-सिहरे जियसिसुवाल-महाहयेण । सई रुपिणि-पाणिगहगु किउ 'माहवे मासे माहवेण ॥ परिषेप्पिणु प्पिणि महमहषु। परणरवर-समरभरवाणु ॥ पइसरह स-बंधव-वारवइ । जहि मणसंभवहो नि मणु हर। पायाले सुरालए परणिवहे। उमिजह उवमाणु गउ तहे॥ गोविवेण णयणाणवयरु। कप्पिणिहि समष्पिपणियहरु ।। अनुमान यानि अतुलु । जिपलोयसार जोविउ विवतु ॥ कुष्परर-कुंडासय-कुप्पियई। सोवग्गई पासई रुपियाई॥ हय गम-रह-चामर-विधाई। छसई-बाइस-समिखाई। एयई अपराई मिजेतई। को अक्विधि सक्काइतेत्तियई॥ ऊर्जयन्त महागिरि के शिखर पर शिशुपाल से महायुद्ध जीतनेवाले माधम ने वसन्त मात्र में स्वयं कक्मिणी से विवाह कर लिया। रुक्मिणी से विवाह कर, शत्रुराजाओं के युद्धभार को वहन करनेघाले श्रीकृष्ण भाई बलराम के साथ द्वारावती (द्वारिका) में प्रवेश करते हैं। जहां यह नगरी कामदेव के भी मन का हरण करती है । पाताल, सुरालय और परिणीपर में उसका उपमान नहीं है कि जिससे उपमा दी जाये। गोविन्द ने नेत्रों को आनन्द देनेवाला अपमा घर रूक्मिणी के लिए समर्पित कर दिया। उसे अतुल धन-धान्य और सुवर्ण दिया। लोक के सार को जीतनेवाला विपुल' जीवन, कोपर, सैकड़ों कुंडा, कुणियाँ और सोने-चांदी के थाल, अश्व, गज, रथ, . थामर, चिह्न, बाघों से समृद्ध छत्र आदि और भी जो दूसरी वस्तुएं दीं, उन सबका का वर्णन कौन कर सकता है ? ---- - १.म-भावहो मासहो । २. म.-चामराई। ३. अ—कुंडाई सकुप्पाई।

Loading...

Page Navigation
1 ... 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204