Book Title: Ritthnemichariu
Author(s): Sayambhu, Devendra Kumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 148
________________ णमो सम्मो] 'भद्दलवण-गगिय संजया। वससहास परिमाण संनया ।। मंद तेत्तिया सेतिया मया। बोसमहास संकिण्णणामया ॥ सयलकाल जे दाणवतया। 'सुरवारप-बहुवाणवंतया ॥ तवणिसिहिण- अणहारि कुंभया। जे जति विहरे भिया । धवल-णिद्ध-णिहोस तया। जे कमाविण के णवि अदतिया ।। माहिहरव्य बहुलद्ध-पक्खया। "कालबट्ट-पट्ट-परपक्लया॥ अलहरन्ध जलपूरियासया । सायरव्य परिपूरिपासया ॥ पत्ता-तहि लक्खाई बरतुरंगहं सहिसाहासई रहवरहें । सिसुवालम्पि रणे विनिय भिग्यि विहि वि हरि-हलहर 1॥ तो रुप्पिणिहें बयण घिउ कायह। वीस सेण्प पाई रयणायरु ।। अहो अहो वेव नारायगु। हज यासय-दुक्खह-भायणु ॥ पइं भतार लहेवि जयसारख । मजरि परिहिउ बइउ महार॥ महावतों से युक्त दस हजार भद्रलक्षण वाले थे। मन्द हाथी भी उतने ही थे और मद हाथी भी उतने ही थे। संकीर्ण नाम के हाथी तीस हजार थे, जो सदैव मदजल देनेवाले थे। सुर-वारण (ऐरावत) के समान प्रचुर मदजल वाले, युवतियों के स्तनों के समान कुंभस्थल वाले थे जो संकट के समय बिना कुम्भस्थल के चलते हैं, जो धवल और निर्दोष दातों बाले हैं, जो पर्वतों की तरह अनेक पक्ष धारण करनेवाले हैं, कालपृष्ठ धनुष की तरह परपक्ष को नष्ट करनेवाले है, मेषों के समान दिशाओं को जलों से आपूरित करनेवाले हैं तथा सागर के समान जिनका आशय परिपूरित है। पत्ता--वहाँ एक लाख उत्तम घोड़े, साठ हजार श्रेष्ठ रथ थे। युद्ध में शिशुपाल और रुक्मि दोनों से हरि और बलराम दोनों भिड़ गए ।।८।। ____ तो रुक्मिणी का मुख कातर हो गया। उसे सेना ऐसी दिखाई देती थी जैसे समुद्र हो। (वह बोसी) हे देव नारायण ! मैं हताश और दुख की पात्र हूं । विश्व में श्रेष्ठ आप जैसे पति को पाकर भी केवल मेरा भाग्य आकर खड़ा हो गया कि आप को हैं और शत्रुसेना अनन्त है। क्या १.—गलिय संभुया । २.प्र-परिणाम। ३. प्र–सुरवरघवडु । ४. प्र—अतृहरि । ५. प्र-- जेण बंति विहरे व कुंभया। ६. प्र-जे कयाइ ण किगावि दंतिया । ७. प्र-कालयमपहलवपक्खया। -. -" --.

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