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छट्टो सम्गी]
यता करे रे
भरिय बसेण सच्चहान नारायमेग । थिय रज्जु सयं भुज्जत सउरीपुरे महं परियणेण ॥
इय रिट्ठणेमिचरिए, धवलइया सिय सयंभूएच कए, चापूर-कंस का लिय महणणरमेण छद्को सग्यो ।।६।।
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पता -- बलराम ने हाथ से रेवती को ग्रहण किया और नारायण ने सत्यभामा को । इस प्रकार वे दोनों अपने परिजनों के साथ शौरीपुर में स्वयं राज्य का भोग करते हुए रहने लगे ।
इस प्रकार धवलइया के आश्रित स्वयंभूदेव कवि द्वारा कृत अरिष्टनेमिर्धारित में चाणूर, कंस और कालिय गथन नाम का छठा सर्गं समाप्त हुआ ॥ ६ ॥