________________
विदो सगो]
कुरुपंडव जायवपमुह प्राय ॥ वत्ता सम्वेवके कपहाणा सव्वेहि सच सामगि किय ।
णिय-णिय मंघारूढ अप्पाण सई भूसित थिय ॥१२॥
इय रिठणेमिचरिए पवलइयासिए सयंमूएवकए गंघव्वसेणालभो णाम
दुइज्जो (विईयो) सगो। स्वयंवर प्रारम्भ हुआ। उसमें कुरु-पांडव और यादव-प्रमुख राजा मिलकर बाये ।
घसा-वे सभी एक-से-एक प्रधान थे । सब के द्वारा सब प्रकार की सामग्री जुटाई गई थी। अपने-अपने मंचों पर बैठे हए वे स्वयं को आभूषित कर रहे थे ॥१२।।
पवलइया के आश्रित स्वयंमूदेव कवि द्वारा विरचित इस अरिष्टनेमिचरित
काव्यमें गन्धर्वसेना प्राप्ति नाम का दूसरा सर्ग समाप्त हुआ।