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पढमो सपो]
काधिबे बलतज गियणयणे। मुच्छिा जइ खिलाई खणि जिसणे। का विछंडणीवि-बंध। हिल्लारउ करइ पधणज ।। काधि बाल लेह विपरीय-तणु । मुई अण्णहि अण्णहि धेरपणु । एस्केपकावयवे विलीग कवि।
पसएस असेसु विविठण वि॥ पत्ता-जाहे महि जि गप चिट्ठी ताहे सहि णि वि थाइ। दुबल ढोर इव पंके पहिय ण उढिवि सस्कइ ॥७॥
जुवे निक्कलसि विकलह का वि। पइससे पइसा तत्ति वि ॥ काउ विम यणगि मुलिविकयउ। कह कह विण पाहि मुक्कियत ।। घरे कम्मु ण लगइ तियरहिं । वसुएउ-हद मोहिय-महहि ॥ जबाउ किन्नइ घरि जिधरे। मेलाब' जस्ण-वउत्ति करे ।। कानेपी जी भरमहार: काहे वि णिरूलाड पसे इयर ॥
अंजन को देती है । कोई अपनी आँख में अलवतक लगाती है। कोई क्षण-क्षण में मी को प्राप्त होती और कोई स्त्रीमती है। कोई नीवी की गाँठ खोलती है और परिधान (साड़ी) ढीली करती है। कोई शरीर उलटकर चालक लेती है, वह मुंह दूसरी ओर होता है, और स्तन दूसरी ओर देती है। वसुदेव के एक-एक अंग में विलीन हो जाती हैं, इसलिए उन्हें वसुदेव समग्न रूप से दिखाई नहीं देते। ___घता –जिसकी दृष्टि जहाँ (जिस अंग पर) गयी उसकी दृष्टि उसी अंग पर महर गयो। कीचड़ में फंसे हुए दुबैल ढोर की तरह वह उठ नहीं सकी ।।७।।
युवा वसुदेव के निकलने पर कोई निकल पड़ती, प्रवेश करने पर प्रवेश करती, परम् तृप्ति नहीं होती। कामदेव की ज्वाला में दब कोई किसी प्रकार अपने को प्राणों से मुक्त नहीं कर पा रही थी। जो स्त्रियाँ वसुदेव के रूप पर मोहित मति थीं उन्हें घर का काम नहीं भा रहा था । घर-घर में मौसी की बाती कि यक्ष-दंपती मिलाप करवा दे । किसी का शरीर ज्जर से पीड़ित था। किसी का ललाट पसीना-पसीना हो रहा पा । ऐसा कोई घर नहीं, चबूतरा
१. ज, म-किज्जइ। २. ज, अ—जाहि जाहिं। ४, ज-मेवावउ। —मेलाव।
३. ज, अ, ब-दिज्जा ।