Book Title: Ratribhojan Pariharak Ras Author(s): Shravak Bhimsinh Manek Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 3
________________ ॥ अथ ॥ ॥ श्री जिनदर्घसूरिकृत रात्रिभोज ननो रास प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ श्रीशंखेश्वर पास प्रभु, महिमा श्रीजग वास खं यक्ष जेहनो जागतो, पूरे वांबित यश ॥ जी,मूके न मूर्त्ति जेहनी, तुंरत जावे देह ॥ वारे चंद्र ल बिंब जराव्यं ह ॥ २ ॥ पूजी केता काललगें, जुव नपति धरणेंद्र || अठम करी पदमावती, याराधी गोविंद || ३ || जरासिंधुयें मूकी जरा, यादव कस्या अचेत ॥ प्रभुपद नमणे सींचीया, हुआ तुरत सचे त ॥ ४ ॥ शंखशब्द पुस्यो तदा, हर्ष धरी गोपाल ॥ थाप्पो नयर संखेसरो, थाप्पो पास दयाल ॥ ५ ॥ वे जग सहु जातरा, परता पूरे तास ॥ कलियुग मांदे कला वधी, सेवे सुर नर जास ॥ ६ ॥ तास च रण प्रणमी करी, हैयडे धरी उल्लास ॥ करूं स्वामी सुपसायची, रात्रि जोजन रास ॥ 9 ॥ सांजलजो श्रा लस त्यजी, याशे लाज अपार ॥ रात्रिनोजन वार जी, सांगली दोष विचार ॥ ८ ॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.orgPage Navigation
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