Book Title: Rashtrakuto (Rathodo) Ka Itihas
Author(s): Vishweshwarnath Reu
Publisher: Archealogical Department Jodhpur

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Page 40
________________ अन्य प्राक्षेप इसी प्रकार परमार वंशकी उत्पत्ति के विषय में भी मतभेद है: पद्मगुप्त ( परिमल ) रचित 'नवसाहसाङ्कचरित' में इस वंश की उत्पत्ति वशिष्ठ के अग्निकुंड से लिखी है । इस वंशवालों के लेखों, और धनपाल रचित 'तिलकमंजरी' से भी इस की पुष्टि होती है । परन्तु हलायुध ने अपनी 'पिंङ्गलसूत्रवृत्ति' में एक श्लोक उद्धत किया है । उस में परमारवंशी राजा मुञ्ज को “ब्रह्मक्षत्रकुलीनः ” लिखा है । यह विचारणीय है। मालवे की तरफ़ के आजकल के परमार अपने को सुप्रसिद्ध राजा विक्रमादित्य के वंशज बतलाते हैं । परन्तु इनके पूर्वजों की प्रशस्तियों आदि से इस बात की पुष्टि नहीं होती। ____ यही हाल प्रतिहार ( पड़िहार ) वंश का है । कहीं पर इस वंश को ब्राह्मण हरिश्चंद्र और क्षत्रियाणी भद्रा की संतान लिखा है, तो कहीं पर वशिष्ठ के अग्निकुण्ड से उत्पन्न हुआ माना है । ___इन अवतरणों पर विचार करने से ज्ञात होता है कि, सम्भवतः, इसी प्रकार की गड़बड़ राष्ट्रकूट वंश के विषय में भी की गई है । वास्तव में देखा जाय तो यह सब झमेला पौराणिक कथाओं के अनुकरण से उत्पन्न हुआ है; इसलिए ऐतिहासिक दृष्टि से विशेष महत्व नहीं रखता। २- विज्ञानेश्वर ने लिखा है कि, क्षत्रियों का गोत्र, और प्रवर उनके पुरोहित के गोत्र, और प्रवर के अनुसार होता है । इससे ज्ञात होता है कि, विक्रम की १२ वीं "विप्रः श्रीहरिचन्द्राख्यः पत्नी भद्रा च क्षत्रिया । ताभ्यान्तु [ ये सुता ] जाता [ प्रतिहा ] संश्च तान्विदुः ॥ ५ ॥" (प्रतिहार बाउक का ८९४ का लेख ) परन्तु इसी लेख में, पहले, प्रतिहार वंश का लक्ष्मण से, जो अपने भाई रामचन्द्र का प्रतिहार ( द्वारपाल ) था, उत्पन्न होना ध्वनित किया है: "स्वभ्रात्रा रामचन्द्रस्य प्रतिहार्य कृतं यतः । श्रीप्रति(ती)हारवंशोयमतश्चोन्नतिमाप्नुयात् ॥ [४]" । (२) दक्षिण के कलचुरी वंशी विज्जल के, श० सं० १०८४ के लेख में, मापसको शत्रुता के कारणही, राष्ट्रकूटों को दैत्यवंशी लिख दिया है। (ऐपिग्राफिया इण्डिका, भा• ५, पृ० १६) (1) "राजन्यविशा 'पुरोहितगोत्रप्रवरौ वेदितव्यौ" । (पौरोहित्यान् राजविशां प्रनण ते इत्याह प्राश्वलायन.") Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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