Book Title: Rashtrakuto (Rathodo) Ka Itihas
Author(s): Vishweshwarnath Reu
Publisher: Archealogical Department Jodhpur

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Page 164
________________ परिशिष्ट . ।.. . १५३ आगे जयञ्चन्द्र के पौत्र सीहाजी पर किये गये माक्षेप के विषय में विचार किया जाता है। कर्नल जेम्स टॉड ने लिखा है: सीहाजी ने गुहिलों को भगाकर लूनी के रेतीले भाग में बसे खेड़ पर अपना राठोड़ी झंडा खड़ा किया। ___ उस समय पाली, और उसके आस पास का प्रदेश पल्लीवाल ब्राह्मणों के अधिकार में था; और उस पाली नामक नगर के पीछे ही वे पल्लीवाल कहाते थे । परन्तु आसपास की मेर और मीणा नामक जङ्गली लुटेरी कौमों से तंग आकर उन्होंने सीहाजी के दल से सहायता मांगी । इस पर सीहाजी ने सहायता देना स्वीकार करलिया, और शीघ्र ही लुटेरों को दबा कर ब्राह्मणों का सङ्कट दूर कर दिया। यह देख पल्लीवालों ने, भविष्य में होने वाले लुटेरों के उपद्रवों से बचने के लिए, सीहाजी से, कुछ पृथ्वी लेकर, वहीं बसजाने की प्रार्थना की; जिसे उन्होंने भी स्वीकार करलिया। परन्तु कुछ समय, बाद सीहाजी ने, पल्लीवालों के मुखियाओं को धोलें से मारकर, पाली को अपने जीते हुए प्रदेश में मिला लिया। ____ इस लेख से प्रकट होता है कि, पल्लीवालों को सहायता देने के पूर्व ही महेवा और खेड़ राव सीहाजी के अधिकार में प्राचुके थे। ऐसी हालत में सीहाजी का उन प्रदेशों को छोड़ कर. पल्लीवाल ब्राह्मणों की दी हुई. साधारणसी भूमि के लिए पाली में आकर बसना कैसे सम्भव समझा जा सकता है । इसके अलावा उस समय उनके पास इतनी सेना भी नहीं थी कि, वह महेवा और खेड दोनों का प्रबन्ध करने के साथ ही पाली पर आक्रमण करने वाले लुटेरों पर भी, आतङ्क बनाये रखते। ____ इसके अतिरिक्त पुरानी ख्यातों में पल्लीवाल ब्राह्मणों को केवल वैभवशाली व्यापारी ही लिखा है । पाली के शासन का उनके हाथ में होना, या सीहाजी का उन्हें, मार कर पाली पर अधिकार करना उनमें नहीं लिखा है। सोलही कुमारपाल का, वि. सं. १२.०१ का, एक लेख पाली के सोमनाथ के मन्दिर में लगा है। उससे प्रकट होता है. कि, उस समय वहां पर कुमारपोलको अभिकार. या, और उसकी तरफ से उसका सामन्त (सम्भवतः चौहान ) बाहडदेव वहां का शासन करता था। कुमारपाल का एक कृपापात्र-सामन्त (१) ऐनाल्स ऐड ऐण्टिकिटीज़ मॉफ राजस्थान, भाग १, पृ. ६४२-४ (२) ऐन्यूमन रिपोर्ट मॉफ दि पार्कियालॉजिकल डिपार्टमेन्ट, जोधपुर गवर्नमैन्ट, मा. ६, (१६३१-३२) पृ. । .. . "E 42 .. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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