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मान्यखेट ( दक्षिण ) के राष्ट्रकूट नवां ताम्रपत्र श. सं. ७३५ (वि. सं. ८६६ ई. स. ८१२ ) का है । इससे ज्ञात होता है कि, गोविन्दराज तृतीय ने लादेश ( गुजरात के मध्य और दक्षिणी भाग ) को विजय कर वहां का राज्य अपने छोटे भाई इंद्रराज को देदिया था । इसी इन्द्रराज से गुजरात के राष्ट्रकूटों की दूसरी शाखा चली थी।
ऊपर लिखी बातों से पता चलता है कि, गोविन्दराज तृतीय एक प्रतापी राजा था । उत्तर में विन्ध्य और मालवे से दक्षिण में कांचीपुर तक के राजा इसकी आज्ञा का पालन करते थे, और नर्मदा तथा तुङ्गभद्रा नदियों के बीच का प्रदेश इसके शासन में था। _____ कडब ( माइसोर ) से, श. सं. ७३५ (वि. सं. ८७० ई. स. ८१३) का, एक ताम्रपत्र और मिला है । इस में विजयकीर्ति के शिष्य जैनमुनि अर्ककोर्ति को दिये गये दान का उल्लेख है ।
यह विजयकीर्ति कुलाचार्य का शिष्य था, और यह दान गंगवंशी राजा चाकिराज की प्रार्थना पर दिया गया था ।
इस दानपत्र में ज्येष्ठ शुक्ला १० को सोमवार लिखा है । परन्तु गणितानुसार उसदिन शुक्रवार आता है । इसलिए यह दानपत्र सन्दिग्ध प्रतीत होता है ।
पहले गोविन्दराज द्वितीय के इतिहास में 'हरिवंशपुराण' का एक श्लोक उद्धृत किया जाचुका है । उसका दूसरा पाद इस प्रकार है:
“पातींद्रायुधनाम्नि कृष्णनृपजे श्रीवल्लभे दक्षिणाम् ।" कुछ विद्वान् इसमें के "कृष्णनृपजे" का सम्बन्ध "श्रीवल्लभे" से, और कुछ "इन्द्रायुधनाम्नि" से लगाते हैं। पहले मत के अनुसार इस श्लोक का सम्बन्ध गोविन्द द्वितीय से होता है । परन्तु पिछले मतानुसार इन्द्रायुध को कृष्ण का पुत्र मान लेने से "श्रीवल्लभ" खाली रहजाता है । इसलिए इस मत को मानने वाले श. सं. ७०५ में गोविन्द द्वितीय के बदले गोविन्द तृतीय का होना अनुमान करते हैं । यह ठीक नहीं है।
(१) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भाग, ३, पृ०५४ (२) तापती और माही नदियों के बीच का देश । (३) इण्डियन ऐपिटक्केरी, भा० १२, पृ० १३; और ऐपिग्राफिया इण्डिका, भा, ४,
पृ. ३४०।
परा।
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