Book Title: Rashtrakuto (Rathodo) Ka Itihas
Author(s): Vishweshwarnath Reu
Publisher: Archealogical Department Jodhpur

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Page 137
________________ राष्ट्रकूटों का इतिहास तीसरा, वि. सं. ११६२ ( ई. स. १९०५) का, ताम्रपत्र मी " महाराज - पुत्र” गोविन्दचन्द्र को है । इस में मदनपाल की पटरानी का नाम राहलेदेवी लिखा है । गोविन्दचन्द्र का जन्म इसी के उदर से हुआ था । ( इस में मी गाहड़वाल वंश का उल्लेख है | ) १२६ चौथौ वि. सं. १९६३ ( वास्तव में वि. सं. ११६४ ) ( ई. स. ११०७ ) का ताम्रपत्र स्वयं मदनपालदेव का है। इस में इस की रानी का नाम पृथ्वीश्री - का. लिखा है । पाँचवाँ वि. सं. ११६६ ( ई. सं. ११०६ ) का है । यह भी "महाराजपुत्र" गोविन्दचन्द्रदेव का है, और इस में भी गाहड़वालवंश का उल्लेख किया गया है । इस राजा का दूसरा नाम मनदेव था । इसकी आगे लिखी उपाधियाँ मिलती हैं :- परमभट्टारक, परमेश्वर, परममाहेश्वर, और माहाराजाधिराज । मदनपाल ने अनेक युद्धों में विजय प्राप्त की थी। उपर्युक्त ताम्रपत्रों से ज्ञात होता है कि, इस ने भी वृद्धावस्था आने पर अपने पुत्र गोविन्दचन्द्रदेव को राज्य का कार्य सौंपदिया था । मदनपाल के चांदी के सिके । "6 इन पर सीधी तरफ़ घुड़सवार का चित्र, और अस्पष्ट अक्षर बने होते हैं । उलटी तरफ बैल की आकृति, और किनारे पर माधव श्रीसामन्त " लिखा रहता है । इन सिक्कों का व्यास ( Diameter ) आधे इच से कुछ छोटा होता है, और इनकी चाँदी अशुद्ध होती है । ( १ ) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भाग २, पृ० ३५६ ( २ ) इराको राहणदेवी भी कहते थे । ( ३ ) जर्नल रॉयल एशियाटिक सोसाइटी, ( १८६६ ), पृ० ७८७ (४) इण्डियन ऐटिकेरी, भाग १८, पृ० १५ (५) कैटलॉग ऑफ दि कौइन्स इन दि इण्डियन म्यूजियम, कलकत्ता, भा. १, १/२६० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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