Book Title: Rashtrakuto (Rathodo) Ka Itihas
Author(s): Vishweshwarnath Reu
Publisher: Archealogical Department Jodhpur

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Page 136
________________ कनौज के गाहड़वाल १२५ इस ने सुवर्ण के अनेक तुलादान भी किये थे । काशी, कुशिक (कन्नौज), उत्तर कोशल (अवध), और इन्द्रप्रस्थ ( देहली ) पर इसका अधिकार था । इसी ने काशी में आदिकेशव नाम के विष्णुका मन्दिर बनवाया था । 1 इसके पुत्र मदनपाल का, वि. सं. ११५४ ( ई. स. १०६७) का, एक ताम्रपत्र मिला है । इसमें चन्द्रदेव के दिये दान का उल्लेख है । इस से ज्ञात होता है कि, यद्यपि चन्द्रदेव उस समय विद्यमान था, तथापि उसने, अपने जीजी, अपने पुत्र मदनपाल को राज्य का अधिकार सौंप दिया था । चन्द्रदेव की निम्नलिखित उपाधियां मिली हैं: परमभट्टारक, महाराजाधिराज, परमेश्वर, परममाहेश्वर । इसका दूसरा नाम चन्द्रादित्य था । इसके दो पुत्र थे :- मदनपाल, और विग्रहपाल । शायद इसी विग्रहपाल से बदायूं की शाखा चली होगी । ४ मदनपाल यह चन्द्रदेव का बड़ा पुत्र था, और उसके बाद गद्दी पर बैठा । इसके समय के पाँच ताम्रपत्र मिले हैं । इनमें का पहला ताम्रपत्र पूर्वोक्त वि. सं. ११५४ ( ई. स. १०१७ ) को है । दूसरों वि. सं. ११६१ ( ई. स. ११०४ ) का इसके पुत्र ( महाराजपुत्र ) गोविन्दचन्द्र का है । इस में " तुरुष्कदण्ड" सहित बसाही नामक गांव के दान का उल्लेख है । इससे ज्ञात होता है कि, जिसप्रकार मुसलमान शासकों ने अपने राज्य में रहनेवाले हिन्दुओं पर " जजिया" नामक 'कर' लगाया था, उसी प्रकार मदनपाल ने भी अपने राज्य के मुसलमानों पर “ तुरुष्कदण्ड" नामका 'कर' लगाया था । इसी ताम्रपत्र में पहले पहल इन राजाओं को गाहड़वाल वंशी लिखा है । ( १ ) इण्डियन ऐण्टिक्केरी, भा० १८, पृ० ११ ( २ ) इण्डियन ऐरिटक्केरी, भा० - ( ३ ) इण्डियन ऐण्टिक्रेरी, भा० १८, पृ० ११ १४, पृ० १०३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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