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राष्ट्रकूटों का इतिहास करने का अच्छा अवसर मिलगया । परन्तु 'रासो' की यह सारी कथा कपोलकल्पित, और पीछे से लिखी हुई है; क्योंकि न तो जयचन्द्र की प्रशस्तियों में ही "राजसूययज्ञ" का या संयोगिता के "स्वयंवर" का उल्लेख मिलता है, न चौहान नरेशों से संबन्ध रखनेवाले ग्रन्थों में ही "संयोगिता-हरण" का पता चलता है । इसके अलावा 'पृथ्वीराजरासो' में पृथ्वीराज की मृत्यु से ११० वर्ष बाद मरनेवाले मेवाड़ नरेश महारावल समरसिंह का भी पृथ्वीराज की तरफ से लड़कर माराजाना लिखा है । इस विषय पर इस पुस्तक के परिशिष्ट में पूरी तौर से विचार किया जायगा। ___शहाबुद्दीन गोरी ने हिजरी सन् ५६० (वि. सं. १२५० ई. स. ११९४) में जयचन्द्र को चंदावल ( इटावा जिले में ) के युद्ध में हराया था। इसके बाद उसे ( शहाबुद्दीन को ) बनारस की लूट में इतना द्रव्य हाथ लगा कि, वह उसको १४०० ऊंटो पर लाद कर गजनी ले गर्यो । यद्यपि उसी समय से उत्तरी हिन्दुस्तान पर मुसलमानों का अधिकार हो गया था, तथापि कुछ समय तक कन्नौज पर जयच्चन्द्र के पुत्र हरिश्चन्द्र का ही शासन रहा था ।
कहते हैं कि, जयचन्द्र ने इस हार से खिन्न हो गंगा–प्रवेश कर लिया था ।
मुसलमान लेखकों ने जयच्चन्द्र को बनारस का राजा लिखा है । सम्भव है उस समय वही नगर इसकी राजधानी रहा हो।
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(१) तबकात-ए-नासिरी पृ० १४०। (२) कामिलुत्तवारीख ( ईलियट का अनुवाद ), भाग २, पृ. २५१ (३) हसन निज़ामी की बनायी 'ताजुल-म-मासिर' में इस घटना का हाल इस प्रकार लिखा
है:-देहली पर अधिकार करने के दूसरे वर्ष कुतुबुद्दीन ऐबक ने कौन के राजा जयचन्द पर चढायी की । मार्ग में सुलतान शहाबुद्दीन भी उसके शामिल हो गया । हमला करने वाली सेना में ५०,००० सवार थे। सुलतान ने कुतुबुद्दीन को फौज के अगले हिस्से में क्खा । जयचन्द ने, प्रागेबढ चन्दावल में, इटावा के पास, इस सेना का सामना किया । युद्ध के समय जयचंद हाथी पर सवार हो अपनी सेना का संचालन काने लगा। परन्तु मम्तमें वह मारा गया। इसके बाद सुलतान की सेना ने माखनी के किले का खजाना लूट लिया, और वहाँ से प्रागे पढ बनारस को भी वही पसा की। इस बूट में ३.. हाथी भी उसके हाथ लगे थे।
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