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कन्नौज के गाहड़पाल 'नैषधीयचरित' नामक प्रसिद्ध काव्य का कर्ता कवि श्रीहर्ष इसीकी सभा का पण्डित था । उस काव्य के प्रत्येक सर्ग के अन्तिम श्लोक में कवि ने अपनी माता का नाम मामलदेवी, और पिता का नाम हीर लिखा है:
"श्रीहर्ष कविराजराजिमुकुटालङ्कारहीरः सुतं ।।
श्रीहीरः सुषुवे जितेन्द्रियचयं मामल्लदेवी च यम् ।" अर्थात्-पिता हीर, और माता मामल्लदेवी से श्रीहर्ष का जन्म हुआ था । 'नैषधीयचरित' के अन्त में लिखा है:____ “ ताम्बूलद्वयमासनं च लभते यः कान्यकुब्जेश्वरात् ।”
अर्थात्-श्रीहर्ष को कान्यकुब्ज नरेश की सभा में जाने पर बैठने के लिए आसन, और ( आते और जाते समय ) खाने को दो पान मिलते थे।
यद्यपि 'नैषधीयचरित' में जयचन्द्र का नाम नहीं है, तथापि राजशेखरसूरिरचित 'प्रबन्धकोश' से श्रीहर्षका कन्नौज नरेश जयञ्चन्द्र की सभा में होना सिद्ध होता है । ( यह कोश वि. सं. १४०५ में लिखा गया था।)
इसी श्रीहर्ष ने 'खण्डनखण्डखाद्य' भी लिखा था । 'द्विरूपकोश' के अन्त में लिखा है:
" इत्थं श्रीकविराजराजमुकुटालंकारहीरार्पितश्रीहीरात्मभवेन नैषधमहाकाव्ये ज्वलत्कीर्तिना। औद्धत्यप्रतिवादिमस्तकतटीविन्यस्तवामांघ्रिणा
श्रीहर्षेण कृतो द्विरूपविलसत्कोशस्सतां श्रेयसे ॥" इससे प्रकट होता है कि, यह कोश भी इसी (श्रीहर्ष ) ने बनाया था । जयञ्चन्द्र कनौज का अन्तिम प्रतापी हिन्दू राजा था। 'पृथ्वीराजरासो' में लिखा है कि, इसने "राजसूययज्ञ" करने के समय, अपनी कन्या संयोगिता का "स्वयंवर" भी रचा था । यही स्वयंवर हिन्दूसाम्राज्य का नाशक बनगया; क्योंकि पृथ्वीराज ने इसी "स्वयंवर" से इसकी कन्या का हरण किया था, और इसीसे इसके और चौहान नरेश पृथ्वीराज के बीच शत्रुता होगयी थी । उस समय भारतवर्ष में ये ही दोनों राजा प्रतापी, और समृद्धिशाली थे । इसलिए इनकी आपस की फूट के कारण शहाबुद्दीन को भारत पर आक्रमण
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