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कनौज के गाहड़वाल
१२३ था । इसके बाद राष्ट्रकूट चन्द्रदेव ने, जिसके वंशज गाधिपुर ( कन्नौज ) के स्वामी होने से बाद में गाहड़वाल के नाम से प्रसिद्ध हुए, वि. सं. ११११ ( ई. स. १०५४ ) में बदायूं पर अविकार कर, अन्त में कन्नौज पर भी अधिकार करलियो । ____इन गाहड़वालों के करीब ७० ताम्रपत्र और लेख मिले हैं । इन में इनको सूर्यवंशी लिखा है । “गाहड़वाल" वंश का उल्लेख केवल गोविन्दचन्द्र के, युवराज अवस्था के, वि. सं. ११६१, ११६२ और ११६६ के, तीन ताम्रपत्रों में, और उसकी रानी कुमारदेवी के लेख में मिलता है । यद्यपि इनके ताम्रपत्रों में राष्ट्रकूट या रट्ट शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है, तथापि ये लोग राष्ट्रकूटों की ही एक शाखा के थे । इस विषय पर पहले, स्वतन्त्र रूप से, विचार किया जा चुका है। ___ काशी, अवध, और शायद इन्द्रप्रस्थ ( देहली ) परभी इनका अधिकार रहा था।
१ यशोविग्रह यह सूर्य-वंश में उत्पन्न हुआ था । इस वंश का सब से पहला नाम यही मिलता है।
(१) जर्नल रॉयल एशियाटिक सोसाइटी ऑफ ग्रेट ब्रिटेन ऐण्ड भायलैंण्ड, जनवरी
सन् १९३०, पृष्ठ ११५-११९ (२) दक्षिण के राष्ट्रकूट धुवराज का राज्य, वि० सं० ८४२ मौर ८५० के बीच, उत्तर
में अयोध्या तक पहुंच गया था। इसके बाद कृष्णराज द्वितीय के समय, वि० सं०६३२ और १७१ के बीच, उसकी सीमा बढ़कर गङ्गा के तट तक फैल गयी थी; और कृष्णराज तृतीय के समय, वि. सं. १६. और १०२३ के बीच, उसने गङ्गा को पार कर लिया था। सम्भव है इसी समय के बीच उनके किसी वंशज को या कन्नौज के पुराने राजघराने के किसी पुरुष को वहां पर जागीर मिली
हो, और उसी के वंश में कन्नौज विजेता चन्द्रदेव उत्पन्न हुभा हो । (३) जर्नल रायल एशियाटिक सोसाइटी, जनवरी १९३०, पृ० १११-१२१ (४) वी. ए. स्मिथ की भी हिस्ट्री मॉफ इण्डिया, पृ. ३८४
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