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मान्यखेट ( दक्षिण ) के राष्ट्रकूट इस के समय के ( ताम्रपत्र मिले हैं । इनमें का पहला श. सं. ७१६ (वि. सं. ८५१ ई. स. ७९४ ) का है । यह पैठन से मिला था। दूसरी श. स. ७२६ (वि. सं. ८६१ ई. स. ८०४ ) का है। यह सोमेश्वर से मिला था। इसमें इसकी स्त्री का नाम गामुण्डब्बे लिखा है । इससे यह भी प्रकट होता है कि, इसने कांची ( कांजीवर ) के राजा दन्तिग को हराया था ।
___ यह दन्तिग शायद पल्लववंशी दन्तिवर्मा होगा; जिसके पुत्र नंदिवर्मा का विवाह राष्ट्रकूट राजा अमोघवर्ष की कन्या शंखा से हुआ था ।
__तीसरा, और चौथा ताम्रपत्र श. सं. ७३० (वि. सं. ८६५ ई. स. ८०८) का है। इनमें लिखा है कि, गोविन्दराज ( तृतीय ) ने, अपने भाई स्तम्भ की अध्यक्षता में एकत्रित हुए, बारह राजाओं को हराया था । ( इससे अनुमान होता है कि, ध्रुवराज के मरने पर स्तम्भने, अन्य पड़ोसी राजाओं की सहायता से, राष्ट्रकूट-राज्यपर अधिकार करने की चेष्टा की होगी।)
गोविन्दराज ने, अपने पिता ( ध्रवराज ) द्वारा कैद किये, चेर ( कोइम्बटूर ) के राजा गंग को छोड़ दिया था । परन्तु जब उसने फिर बगावत पर कमर बाँधी, तब उसे दुबारा पकड़ कर कैद करदिया ।
(1) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भा. ३, पृ. १०५ (२) इण्डियन ऐपिटक्केरी, भा. ११, पृ. १२६ (३) इण्डियन ऐगिटक्केरी, भा. ११, पृ. १५७; और ऐपिग्राफिया इण्डिका भा. ६,
पृ. २४२ । (४) स्तम्भ के, नेलमंगल से मिले, श. सं. ७२४ के, दानपत्र में स्तम्भ के स्थान पर शौचखम्भ ( शौचकंभ ) नाम लिखा है
"भ्राताभूतस्य शक्तित्रयनमितभुवः शौचखम्भाभिधानो"। इस दानपत्र से यह भी ज्ञात होता है कि, सम्भवतः उपर्युक्त पराजय के बाद यह शौचखम्भ गोविन्दराज का प्राज्ञाकारी बनगया था। शौचखम्भ का दूसरा नाम रणावलोक था भौर इसने, बप्पय नामक राजकुमार की सुफ़ारिश से, जैन मन्दिर के लिए, एक गांव दान दिया था।
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