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उपसंहार हमारे मतानुसार विजयचन्द्र से सीहाजी तक की वंशावली इस प्रकार होनी चाहियेः
विजयचन्द्र
जयच्चन्द्र
माणिकचन्द्र
हरिश्चन्द्र ( वरदायीसेन ) ( प्रहस्त ) जयपाल ( जजपाल )
सीहा
सेतराम राष्ट्रकूटों की तीसरी शाखा ने, सोलंकियों के राज्य को छीनकर, दक्षिण में अपना अधिकार जमाया था । यद्यपि अबतक इसके प्रारम्भ काल का पता नहीं चला है, तथापि सोलंकी ( चालुक्य ) जयसिंह के समय ( विक्रम की छठी शताब्दी के उत्तरार्ध में ) वहां पर राष्ट्रकूटों के प्रबल राज्य का होना पाया जाता है । इसी को नष्टकर जयसिंह ने फिर सोलंकियों के राज्य की स्थापना की थी। परन्तु करीब २५० वर्ष बाद (वि० सं० ८०५=ई० स० ७४७ के आस पास) राष्ट्रकूट दन्तिवर्मा ( द्वितीय ) ने, सोलंकी कीर्तिवर्मा द्वितीय को हरा कर, एकवार फिर दक्षिण में राष्ट्रकूट राज्य की स्थापना की । यद्यपि यह राज्य वि० सं० १०३० ( ई० स० १७३ ) ( अर्थात् सवादोसौ वर्ष ) तक राष्ट्रकूटों के ही अधिकार में रहा, तथापि इसके बाद, इस वंश के अन्तिम राजा कर्कराज (द्वितीय) के समय, सोलंकी तैलप (द्वितीय) की चढ़ाई के कारण इसकी समाप्ति हो गयी थी।
दक्षिण के राष्ट्रकूटों की ही दो शाखाओं ने, विक्रम की ८ वीं शताब्दी के प्रारम्भ से विक्रम की नवीं शताब्दी के पूर्वार्ध तक, लाट ( गुजरात ) में क्रमशः राज्य किया था । इन शाखाओं के राजा दक्षिण के राष्ट्रकूटों के सामन्त थे। ___ इन स्थानों के अतिरिक्त सौन्दत्ति ( धारवाड़-बंबई ), हyडी ( मारवाड़ ),
और धनोप ( शाहपुरा ) में भी राष्ट्रकूटों की पुरानी शाखाओं के राज्य रहने के प्रमाण मिले हैं।
इस वंश की इधर उधर से मिली अन्य प्रशस्तियों का उल्लेख अगले अध्याय में किया जायगा।
(१) सम्भव है वरदायीसेन हरिश्चन्द्र का छोटा भाई हो।
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