Book Title: Rashtrakuto (Rathodo) Ka Itihas
Author(s): Vishweshwarnath Reu
Publisher: Archealogical Department Jodhpur

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Page 52
________________ राष्ट्रकूटों का प्रताप राष्ट्रकूट दन्तिदुर्ग ने सोलंकी ( चालुक्य ) वल्लभ कीर्तिवर्मा को जीतकर "वल्लभराज' की उपाधि धारण की थी। यही उपाधि उसके उत्तराधिकारियों के नाम के साथ भी लगी रहती थी। इसी से पूर्वोक्त लेखकों ने इन राजाओं को बलहरा के नाम से लिखा है । यह शब्द “वल्लभराज" का ही बिगड़ा हुआ | रूप है। येवूर ( दक्षिण में ) के पास के सोमेश्वर के मंदिर से मिले लेखसे प्रकट होता है कि, राष्ट्रकूट नरेश इन्द्रराज की सेना में ८०० हाथी, और ५०० सामन्त थे । (१) सा हैनरी ईलियट, मौर कर्नल टॉड प्रादि का अनुमान था कि, अरब लेखकों ने इस बलहरा शब्द का प्रयोग वलभी के राजामों या स्वयं चालुक्यों के लिए ही किया है। ( ईलियट्स हिस्ट्री मॉफ इण्डिया, भा० १, पृ. ३१४.३५५ ) परन्तु उनका यह अनुमान निर्मूल है; क्योंकि बलभी का राज्य वि. सं. ८२३ ( ई. स. ७६६ ) के करीब ही नष्ट होचुका था; और चालुक्य राजा मंगलीश के, वि० सं० ६६७ (इ. स. ६१० ) में, मारे जाने पर उसके राज्य के दो भाग होगये थे। एक का स्वामो पुलकेशी हुप्रा । उसके वंशज कीर्तिवर्मा से, वि० सं० ८.१ और ८१. (ई.स. ७४८ और ७५३ ) के बीच, राष्ट्रकूट दन्तिदुर्ग ने राज्य छीनलिया। यह राज्य वि० सं० १०३० ( ई. स. १७३ ) के करीब तक राष्ट्रकूटों के वंश में ही रहा । परन्तु इसके पास पास चालुक्यवंशी तेलप द्वितीयने, राष्ट्रकूट राजा कर्कराज द्वितीय के समय, उसपर फिर अधिकार करलिया। इससे प्रकट होता है कि, वि० सं० ८०५ के करीब से वि० सं० १०३० ( ई० स० ४८ से ६७३ ) के करीब तक पश्चिमी चालुक्यों की इस शाखा का राज्य राष्ट्रकूटों के ही हाथ में था। सोलंकियों की पहली राजधानी बादामी थी। परन्तु तैलप द्वितीय ने, राज्य पर प्रधि. कार कर, कल्याणी को अपनी राजधानी बनाया। दूसरी शाखा का स्वामी विष्णुवर्धन हुआ। उसके वंशज पूर्वी चालुक्य कहाये । उनका राज्य वेंगी में था, और वे राष्ट्रकूटों के सामन्त थे। (२) जिसप्रकार फ़ारसी तवारीखों में मेवाड़ नरेशों के नामों के स्थान में केवल "राण" शब्द ही लिखा गया है, उसी प्रकार अरब लेखकों ने भी दक्षिण के राष्टकट राजाओं के नामों के स्थान में केवल "बल्हरा" शब्द का ही प्रयोग किया है। (३) “योराष्ट्रकूटकुलमिन्द्र इति प्रसिद्धं कृष्णायस्य सुतमष्टगतेभसैन्यम् । निर्जित्य दग्धनृपपंचशतो.. .. . ॥ (इण्डियन ऐण्टिक्केरी, भा०८, पृ. १३,) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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